Sunday 26 August 2012

आखिर कैसे?

कैसे भुला दूँ वो दिन 
जो तुम्हारी यादों में हमने गुजारी हैं
कितना प्यारा लगता था
वो दर्द!
जो मेरी हर सांस के साथ आता था
तुम्हारी यादों की खुशबू लिए 
एक काँटा चुभा जाता था
और वो जख्म
जो तुझसे बिछड़ने पर मिला था
उसमे तुम नज़र आती हो 
चाहता हूँ की कुछ और भी देखूं 
मगर इन आँखों को बस तुम नज़र आती हो
कैसे भुला दूँ
मै तुम्हारा प्यार 
और उससे टपकती प्यार की
हर एक बूंदें
जो मेरे दिल की बंज़र जमीन पर
आज तक
सावन बनकर बरसती रही हैं
कैसे भुला दूँ?
आखिर कैसे?  

Tuesday 17 April 2012

टूटा सपना

सपन सलोना देखा मैंने
उनको अपना देखा मैंने
बहुत हसीं मंज़र था वो
जब दर्द भरी तन्हाई थी
अँधेरी रातों में भीगी-भीगी सी
बारिश भी थी
उनसे मिलने की इस दिल में 
थोड़ी सी ख्वाहिश भी थी
हर लम्हा ये मैंने सोचा 
कदम बढाकर उनको छू लूँ 
उनकी सूरत कैसे भूलूं
टीस उभरती थी इस दिल में 
पड़ा था मै कैसी मुश्किल में
लाख बचाया मैंने दामन 
आ ही गया उनकी महफ़िल में
आने के बाद यूँ लगा जैसे
और कोई ज़न्नत ही नहीं
उनके मैख़ाने से बढ़कर
कसम ख़ुदा की मैंने चाहा
उनको ख़ुदा से भी बढ़कर
सब कहते थे दीवाना हूँ
कहने लगे वो बेगाना
तब मेरी आँख में आंसू आये
देखके फिर वो वापस आये
दिल पे मेरे वो हाथ भी रखे
फिर अपना दामन फैलाये
अश्क भी पोंछे थे तब हमने
उनकी तरफ कुछ कदम बढ़ाये
ठीक तभी था बादल  गरजा
मिलके भी उनसे मिल नहीं पाए
आँख खुल गयी थी अब मेरी
टूटा सपना देखा मैंने
उनको अपना देखा मैंने
उनको अपना देखा मैंने ..........

Friday 6 April 2012

तुम्हारी वो एक शरारत


याद है मुझे आज भी तुम्हारी वो एक  शरारत
जब अचानक एक दिन
मेरे सामने तुम गिर पड़ी थी
और रोने लगी थी बच्चों की तरह
मैं दौड़कर तुम्हे सँभालने
तुम्हारे पास पहुंचा था
फिर कैसे तुमने मुझ पर 
खुद के छेड़ने का आरोप लगाकर 
लोगों से पिटवाया था
और बाद में मेरे कन्धों पर हाथ  रखकर
बड़े प्यार से मुझसे ये भी पूछा था-
कहीं ज्यादा तो नहीं लगी....... 

Thursday 5 April 2012

कोई मंजिल नहीं..

तुमको इस प्यार की कदर ही नहीं
शाम कैसी  है कुछ खबर  ही  नहीं  
फिर  से  पैमाने  इतने  टूटे  आज 
तेरे  जाने  का  कोई  डर  ही  नहीं
उनको  जिद है  कि रौशनी ला दो
और  मेरे रात की  सहर  ही  नहीं
क़त्ल   करने  मेरा, गए  वो  वहां
जिस मोहल्ले में मेरा घर ही नहीं
पूछ मत `सहर`क्या क़यामत थी
कोई  मंजिल  नहीं,डगर  ही नहीं  

Monday 2 April 2012

आँखें भी बोलती हैं...

बेशुमार चाहत थी 
इन उदास आँखों में
जो आंसुओं से लिपटकर छलकना चाहती थीं,मगर
पलकों तक आते-आते
सूख गयीं 
मैं जानता हूँ
कि तुमने तबस्सुम से सराबोर
अपने अल्फ़ाजों को
दफ़्न कर रखा है,अपने वजूद में ही कहीं
क्या हो जाता,जो और एक पल
अपनी आँखें खुली रखते
बयां हो जाने देते अपनी आँखों से ही
मुहब्बत की वो एक अनकही दास्तां
शायद तुम आज भी इस बात से अन्जान हो
कि आँखें भी बोलती हैं...

बेवफा तुम थे


चाहत मेरी भी थी तुमसे 
और मुहब्बत तुम भी करते थे
इस बात से न मै बेखबर था 
न ही तुम अन्जान
मगर जब चुन ही लिया है
तुमने कोई और हमसफ़र तो
मत सुनाओ मुझसे अपनी मजबूरियों का सबब 
मैं जनता था 
कि तुम मेरे साथ 
इन कंटीले रास्तों पर चल नहीं पाओगे
बीच राह में मुझे तन्हा छोड़कर 
कहीं और चले जाओगे
तुम चले तो गए
पर मैं तन्हा नहीं हुआ
मैं आज भी चीख-चीख कर कहता हूँ
तुम्हारी यादों से
कि चली जाओ मुझे छोड़कर
मुझसे दूर बहुत दूर बहुत दूर कहीं
मगर वो नहीं जाती  
जानते हो क्यूँ
क्यूंकि बेवफा तुम थे
तुम्हारी यादें नहीं.

शायद



सुना है....
एक दीवाना था 
जिसने तुम्हारी याद में रो-रो कर
अपना दम तोड़ दिया
उसके आंसुओं से बनी एक नदी 
आज भी वहां बहती है
सुना है....
उस नदी के पानी में आज भी इतना दर्द है 
कि शायद एक मछली भी तड़पकर
अपना दम तोड़ दे
जाओ  जाकर छू लो 
ज़रा एक बार उस ज़हरीले पानी को
शायद अमृत बन जाए....

एक बूंद.......

एक दिन 
गर्मी की तपिश  में
तुम्हारे माथे से निकली हुई
पसीने की वो इक  बूंद
किस कदर तुम्हारे जिस्म को
सराबोर करती हुई समा गयी थी 
उस बंज़र ज़मीं में
उसी बूंद से निकला था 
यह पौधा शायद
जो आज एक पेड़ बन चुका है 
तब बहुत ग़मज़दा था मै
कि,तुम्हारे पलकों की एक छांव न पा सका
मगर आज सुकून है मुझे 
कि जिस पेड़ कि छाँव में मै हूँ
वो तेरी बूंद से है....

Tuesday 14 February 2012

मेरा आज का वेलेंटाइन डे




आज सुबह अस्पताल के कैंटीन से
जब मै चाय लेकर लौटा
तो सबकी तरह मैंने भी एक गुलाब लिया
सोचा कब फुर्सत मिले
कि आज मै भी इसे किसी को देकर
अपने दिल में दबी चाहत की परत
उसके सामने खोलूं
जैसे ही मौका मिला
मैंने एक खुबसूरत सी लड़की को
हॉस्पिटल के लिफ्ट कि तरफ जाते देखा
मै भी उसके पीछे घोड़े कि रफ़्तार से
सरपट भाग उसके साथ हो लिया
बड़ा ही खुश था मै,मौका भी अच्छा था
लिफ्ट मै और वो अकेले थे
जैसे ही उससे कुछ कहने के लिए
मैंने उसकी तरफ देखा
तो लगा जैसे उसकी उदास आँखें
कुछ तलाश रही हों
मेरे हाथों से गुलाब छुट गया
मैंने उससे पूछा- क्या हुआ
वह खामोश रही
फिर मैंने उसके कंधे पर हाथ रखा और पूछा
इतनी उदास क्यूँ हो
और फिर वो ........
मेरे 
सीने से लगकर रोने लगी
मुझे एक छोटी सी नेकर और टी शर्ट दिखाई
उसकी आवाज़ जैसे कहीं खो गयी थी
मै हैरान था इतने में लिफ्ट रुकी
और कुछ लोग उसके पास आये
मैंने उनसे भी पूछा क्या बात है?
लोगों ने जवाब दिया इसका बच्चा
अब इस दुनिया में नहीं रहा
मै बोझल पलकों के साथ सोचने लगा 
 
काश मै अभी एक छोटा बच्चा बन जाता
तो भर देता शायद उसकी सुनी गोद,
मुझे भी मिलता उसकी गोद में अथाह
मात्री सुख...
मेरे अन्दर कि भावना अब बदल चुकी थी
जिसमे मै आज किसी के
सीने से नहीं कलेजे से लगा!!!!