Tuesday 17 April 2012

टूटा सपना

सपन सलोना देखा मैंने
उनको अपना देखा मैंने
बहुत हसीं मंज़र था वो
जब दर्द भरी तन्हाई थी
अँधेरी रातों में भीगी-भीगी सी
बारिश भी थी
उनसे मिलने की इस दिल में 
थोड़ी सी ख्वाहिश भी थी
हर लम्हा ये मैंने सोचा 
कदम बढाकर उनको छू लूँ 
उनकी सूरत कैसे भूलूं
टीस उभरती थी इस दिल में 
पड़ा था मै कैसी मुश्किल में
लाख बचाया मैंने दामन 
आ ही गया उनकी महफ़िल में
आने के बाद यूँ लगा जैसे
और कोई ज़न्नत ही नहीं
उनके मैख़ाने से बढ़कर
कसम ख़ुदा की मैंने चाहा
उनको ख़ुदा से भी बढ़कर
सब कहते थे दीवाना हूँ
कहने लगे वो बेगाना
तब मेरी आँख में आंसू आये
देखके फिर वो वापस आये
दिल पे मेरे वो हाथ भी रखे
फिर अपना दामन फैलाये
अश्क भी पोंछे थे तब हमने
उनकी तरफ कुछ कदम बढ़ाये
ठीक तभी था बादल  गरजा
मिलके भी उनसे मिल नहीं पाए
आँख खुल गयी थी अब मेरी
टूटा सपना देखा मैंने
उनको अपना देखा मैंने
उनको अपना देखा मैंने ..........

Friday 6 April 2012

तुम्हारी वो एक शरारत


याद है मुझे आज भी तुम्हारी वो एक  शरारत
जब अचानक एक दिन
मेरे सामने तुम गिर पड़ी थी
और रोने लगी थी बच्चों की तरह
मैं दौड़कर तुम्हे सँभालने
तुम्हारे पास पहुंचा था
फिर कैसे तुमने मुझ पर 
खुद के छेड़ने का आरोप लगाकर 
लोगों से पिटवाया था
और बाद में मेरे कन्धों पर हाथ  रखकर
बड़े प्यार से मुझसे ये भी पूछा था-
कहीं ज्यादा तो नहीं लगी....... 

Thursday 5 April 2012

कोई मंजिल नहीं..

तुमको इस प्यार की कदर ही नहीं
शाम कैसी  है कुछ खबर  ही  नहीं  
फिर  से  पैमाने  इतने  टूटे  आज 
तेरे  जाने  का  कोई  डर  ही  नहीं
उनको  जिद है  कि रौशनी ला दो
और  मेरे रात की  सहर  ही  नहीं
क़त्ल   करने  मेरा, गए  वो  वहां
जिस मोहल्ले में मेरा घर ही नहीं
पूछ मत `सहर`क्या क़यामत थी
कोई  मंजिल  नहीं,डगर  ही नहीं  

Monday 2 April 2012

आँखें भी बोलती हैं...

बेशुमार चाहत थी 
इन उदास आँखों में
जो आंसुओं से लिपटकर छलकना चाहती थीं,मगर
पलकों तक आते-आते
सूख गयीं 
मैं जानता हूँ
कि तुमने तबस्सुम से सराबोर
अपने अल्फ़ाजों को
दफ़्न कर रखा है,अपने वजूद में ही कहीं
क्या हो जाता,जो और एक पल
अपनी आँखें खुली रखते
बयां हो जाने देते अपनी आँखों से ही
मुहब्बत की वो एक अनकही दास्तां
शायद तुम आज भी इस बात से अन्जान हो
कि आँखें भी बोलती हैं...

बेवफा तुम थे


चाहत मेरी भी थी तुमसे 
और मुहब्बत तुम भी करते थे
इस बात से न मै बेखबर था 
न ही तुम अन्जान
मगर जब चुन ही लिया है
तुमने कोई और हमसफ़र तो
मत सुनाओ मुझसे अपनी मजबूरियों का सबब 
मैं जनता था 
कि तुम मेरे साथ 
इन कंटीले रास्तों पर चल नहीं पाओगे
बीच राह में मुझे तन्हा छोड़कर 
कहीं और चले जाओगे
तुम चले तो गए
पर मैं तन्हा नहीं हुआ
मैं आज भी चीख-चीख कर कहता हूँ
तुम्हारी यादों से
कि चली जाओ मुझे छोड़कर
मुझसे दूर बहुत दूर बहुत दूर कहीं
मगर वो नहीं जाती  
जानते हो क्यूँ
क्यूंकि बेवफा तुम थे
तुम्हारी यादें नहीं.

शायद



सुना है....
एक दीवाना था 
जिसने तुम्हारी याद में रो-रो कर
अपना दम तोड़ दिया
उसके आंसुओं से बनी एक नदी 
आज भी वहां बहती है
सुना है....
उस नदी के पानी में आज भी इतना दर्द है 
कि शायद एक मछली भी तड़पकर
अपना दम तोड़ दे
जाओ  जाकर छू लो 
ज़रा एक बार उस ज़हरीले पानी को
शायद अमृत बन जाए....

एक बूंद.......

एक दिन 
गर्मी की तपिश  में
तुम्हारे माथे से निकली हुई
पसीने की वो इक  बूंद
किस कदर तुम्हारे जिस्म को
सराबोर करती हुई समा गयी थी 
उस बंज़र ज़मीं में
उसी बूंद से निकला था 
यह पौधा शायद
जो आज एक पेड़ बन चुका है 
तब बहुत ग़मज़दा था मै
कि,तुम्हारे पलकों की एक छांव न पा सका
मगर आज सुकून है मुझे 
कि जिस पेड़ कि छाँव में मै हूँ
वो तेरी बूंद से है....