Wednesday 21 December 2011

मुझे भी तुमसे प्यार है.....

एक लड़की है खुबसूरत सी
उससे भी ज्यादा खुबसूरत
उसका दिल
बिल्कूल अपनी सी लगती है
मुझे कुछ कहना है उससे
लेकिन  
डर सा लगता है

मै कैसे कहूँ उससे
कि उसका दिल मुझे
अपना घर सा लगता है
काश ऐसा होता कि वो
आवाज़ देकर मुझे बुलाती
 या नहीं तो लौटकर
मेरे पास ही आती
मेरे  आंसुओं को पोछकर
मेरे ज़ख्मों पे हाथ  रखती 
मेरे प्यार को समझती 
और मुझसे कहती 
मुझे भी तुमसे प्यार है.....
मुझे भी तुमसे प्यार है.....  

Tuesday 20 December 2011

मगर कहीं वो नज़र न आया

उम्मीद  लेकर नज़र  उठाया
मगर कहीं वो नज़र न आया
आवाज़   देकर  उसे  बुलाया
मगर कहीं वो नज़र न आया       




वो मेरा हमदम,वो हमनशीं है
मैं  कैसे  कह  दूँ  उसे  पराया
पलक झपकते ही उठके देखा
मगर कहीं वो नज़र न आया


क्या  चाहता  है  ये  दिल  हमारा
बस  एक चाहत बस उसका साया
अगर वो मिलता तो उससे कहता
मगर  कहीं  वो  नज़र   न  आया




इसी शहर में है अब  वो  रहता
अजीब   है   दास्ताँ   खुदाया
मैं  उसको  ढूंढा गली-गली में
मगर कहीं वो नज़र न आया

तुमसे प्यार नहीं....

बात करते हैं मुझसे हंस-हंसके
मेरे  हर  गम   पे भी रो देते है
फिर भी कहते हैं तुमसे  प्यार नहीं...
जब भी करता हूँ प्यार की बातें
देखते हैं वो अपने हाथों में
कितना बेचैन कर गया है


वो एक शख्स मुझे 
सिर्फ  दो चार  मुलाकातों  में
जब भी नज़रें मिलाते  हैं हमसे
अपनी आँचल में सिमट जाते हैं
फिर भी कहते हैं तुमसे प्यार नहीं....
खुद वो ज़ख्म भी देते हैं मुझे
और खुद ही सवाल  करते हैं
न चले जायें कहीं जख्म के भर जाने पर
बस इसी बात से हम डरते है
देखते  हैं वो  गर  उदास  मुझे
आके  सीने से लिपट जाते हैं
फिर भी कहते हैं तुमसे प्यार नहीं....

Wednesday 14 December 2011

तुमसे मिलकर

मिलकर मैंने तुमसे जाना 
जीने का अंदाज़ हो तुम 
हसीं लबों पर हया आँख में
खाबों की परवाज़ हो तुम
कदम-कदम पर ठोकर खाया
दुनिया में ना संभल  सका
तुने उठा दिया पल भर में
एक अनोखा राज़ हो तुम
तेरी यादों के बदले में
मैंने सब कुछ तुम्हे दिया
चुप रहकर सब कुछ कह डाला
निःशब्द कोई आवाज़ हो तुम
आँखों में तस्वीर है तेरी
धड़कन में भी `सहर` तुम्ही
हर  आहट  संगीत  है कोई
दिल का मेरे साज़ हो तुम
मिलकर तुमसे मैंने जाना.......

आखिर क्यूँ???

वो एक पल
जो एहसास दिलाता है
मेरे पास तुम्हारी मौजूदगी का
वो एक पल
जो न जाने कब चुपके से
मेरी जिंदगी का हिस्सा बन गया
वो एक पल
जो अब शायद
मेरे हर दर्द की दवा बन गया है
वो एक पल
जो मेरे आशियाने को
रौशन करके,उसकी फिज़ा में
ख़ुश्बू  बिखेर देता है
वो एक पल
जो न जाने कितनी ही
खुशियाँ
दे जाता है मुझे
वो एक पल
जिससे न जाने कितनी ही उम्मीदें
जोड़ रखी हैं मैंने
तुम ये सब जानकार भी
दुनिया की भीड़ में
इस कदर क्यूँ खो जाती हो
कि  नही  निकाल पाती  मेरे लिए 
वो एक पल
आखिर क्यूँ??????????

Tuesday 13 December 2011

कहाँ कोई साथ है.....

फिर यहाँ  दस्तक  हुई
आहट हुईं कुछ  बात है
मगर कहाँ कोई साथ है..... 
पास जाना चाहते थे
दूरियां बढती गयी
कहने वाले कहते हैं
कितनी हसीं मुलाकात है
मगर कहाँ कोई साथ है....
ये हवा कुछ सर्द है
आवाज़ में भी दर्द है
राह चलना भी कठिन है
और  अँधेरी  रात  है
मगर कहाँ कोई साथ है....
भूल जाता हूँ जहाँ को
जब तेरी याद आती है
ऐसा लगता  है  मेरे
हाथों में तेरा हाथ है
मगर कहाँ कोई साथ है....

Monday 12 December 2011

कोई और था..........

कितना बखुब निभाया वो किरदार
रंगमंच पर
मुझे नायक बनाकर, मेरी जिंदगी के साथ
और  मै यकीं करता चला गया
उसके हर लफ्जों पर
जाने कब खो गया
और समां गया उसका सारा वजूद मुझमे
इस कदर जगा गयी वो अपना एहसास मुझमे
की मुझे और किसी का खयाल ही न रहा
जब नींद खुली तो साथ में कोई नहीं था
हजारों,लाखों के बीच  मै कुछ यूँ तनहा था
जैसे कोई नुमाईस की चीज़
मेरी आँखों में आंसू थे
और लोग तालियाँ बजा रहे थे
सुकून था मुझे फिर भी
कि वो इस अभिनय को एक जीवंत रूप दे चुके थे
फर्क सिर्फ इतना था कि...
उसका  नायक मै नहीं
कोई और था..........

Sunday 11 December 2011

हसरत थी

हसरत थी
कि,तुम ख़ाब के दरीचों से
कोई ख़ाब चुराकर लाते
मेरे लिए

तुम्हारी मौजूदगी का जो एहसास
मेरे दिल में है
जगा जाते मेरी आँखों में भी
हसरत थी
कि,तुम वक़्त की टहनी से
कुछ पल चुराकर लाते
सिर्फ मेरे लिए
तो कोशिश करते हम भी
तुम्हारी साँसों में समाने की
जिस तरह बस गये हो तुम
मेरी साँसों में
हसरत थी
कि तुम कभी आते
मेरी बेताब धडकनों को  सुकून का कोई  लम्हा देने
और मेरे सीने पर हाथ रखते
तो बंद कर लेता मै अपनी आँखें
फिर सो जाता तुम्हारी जुल्फों तले
हमेशा-हमेशा के लिए.......

Thursday 3 November 2011

बेवजह ख़ाली हाथ जाओगे...........

उफ़नते हुए बादलों के बीच 
चमकती हुई बिजली की धुंधली सी रौशनी  में,
देखी थी एक झलक, उस फरेब चेहरे की ,
गोया वो फिर से मुझे लूटने की कोशिश में हो ,
मैंने भी कह दिया ........
शौक से आओ,
 मेरे दामन की सारी खुशियाँ तो पहले  ही ले जा चुके हो,
अब यहाँ दर्द के सिवा कुछ भी नहीं पाओगे,
बेवजह ख़ाली हाथ जाओगे...........

Wednesday 3 August 2011

फ़रियाद

ये नहीं   कहता, मुझे आबाद कर

मैं   तेरा, मर्जी  तेरी   बर्बाद   कर

ख्वाब पलकों पर सजाये थे बहुत

रेत पर घर  भी   बनाये   थे बहुत

एक झोंके में  मगर   ये क्या हुआ

पहले   भी   तूफान  आये थे बहुत

बेरुखी इतनी जो है मुझसे तेरी

फिर कभी हम ना मिलें फ़रियाद कर

मैं तेरा ....

अपनी साँसों में बसाया था तुझे

जिन्दगी अपनी बनाया था तुझे

तुझको पूजा तू मेरी आराधना थी

देवता अपना बनाया   था  तुझे

तू थी मेरे दिल में तो अब मेरे दिल की

थम गयी है नब्ज़ तू परवाज़ कर

मैं तेरा .........

Tuesday 2 August 2011

एक पल सुकूँ की ख़ातिर

दुनिया    के  तोड़    बंधन   मैं  पास  तेरे  आऊं
एक पल सुकूँ  की ख़ातिर तेरी बाहों में खो जाऊं


     मुद्दत की एक ख्वाहिश चाहो तो  कुचल देना
     एक बीज प्यार  के   जो  जाते   हुए  बो जाऊं


बोझल हो मेरी पलकें  तेरी   गोद   में सर रखूं
बिखरा दो अपनी जुल्फें जुल्फों तले  सो जाऊं


     गुजरे हुए लम्हों  की  याद आती  है  रोने दो
     ये दिल  के दाग़ अपने अश्कों से मैं धो जाऊं


ऐ  जाँ  बिछडके   तुझसे ये   जिंदगी कहाँ है
साँसों में तुम  बसा  लो बस तेरा ही हो जाऊं

Wednesday 27 July 2011

सिलसिला


एक बार जुड़ा तो टूटता ही नहीं
उनकी स्मृतियों का सिलसिला
क्या हुआ मेरे वजूद को
जिसे वो पत्थर कहा करते थे
बदल जाऊं मै शायद
न जाने क्या-क्या वो करते थे
कुछ वक़्त की नाइंसाफी थी
और कुछ अपनी नादानी
कल तक जो मै
अपनी तन्हाई में खुश था
नहीं थी ख्वाहिश कुछ और पाने की
तो आज क्यूँ महसूस होती है
हर कदम पर किसी की कमी
क्यूँ तलाशती हैं मेरी आँखें
उसके वजूद को
कुछ है रिश्ता उससे शायद! तभी तो
जब भी किसी को कोई
स्नेह से पुकारता है
तो अंकित हो जाता है 
मेरे अन्तः करण पर उनका प्रतिबिम्ब
और शुरू हो जाता है फिर से
एक निश्छल और अटूट
उनकी स्मृतियों का सिलसिला.........