Thursday 9 May 2024

आ जाओ कभी

ए मेरी जिंदगी 
तुम मेरे सांसों की इतनी करीब होकर भी 
मुझसे इतनी दूर क्यों है 
जमाने की बंधनों में बंध कर 
मेरे पास ना आने के लिए मजबूर क्यों है 
हर पल ढूंढती है 
मेरी बेचैन दिखाएं तुम्हें 
बेकरार होकर 
आ जाओ किसी रोज चुपके से 
तुम शमा बनकर 
और रोशन कर दो 
मेरी विरानियों को 
मेरे पतझड़ हुए इस दुनिया को 
महकाने के लिए 
आ जाओ कभी 
खुशबू बनकर 
मुझे इंतजार है कयामत तक 
हर पल सिर्फ तुम्हारा

मेरे हमसफर

ऐ मेरे हमसफर 
कब तलक यूं ही 
तरसती निगाहों में ख्वाब बनकर
आते रहोगे और जाते रहोगे
कब आओगे मेरे पास 
मुझे कभी न छोड़कर जाने के लिए 
मेरी हर सफर में साथ-साथ चलने के लिए 
कब दोगे मुझे 
तन्हाइयों की धूप से बचने के लिए 
अपने पलकों की एक नर्म छांव 
हर आहट पर चौक कर देखता हूं 
कि शायद तुम हो 
तुम्हारी हर एक सांस 
दस्तक देती है मेरे दिल पर 
मजबूर करती है 
मुझे तुम्हारे पास आने को 
काश! मेरे पास भी 
चिड़ियों की तरफ पर होते
आ जाते हम भी 
सात समुंदर का फासला 
एक पल में उड़कर 
तुम्हारे पास 
और सिमट जाते 
तुम्हारी आगोश में 
हमेशा-हमेशा के लिए

रंगमंच

कितना बखूबी निभाया वह
 किरदार रंगमंच पर 
मुझे नायाब बनाकर 
मेरी जिंदगी के साथ 
ऐसा लगा 
जैसे सब कुछ सच हो 
और मैं यकीन करता चला गया 
उसके हर लफ्जों पर 
जाने कब खो गया मैं उसमें 
जाने कैसे समा गया उसका वजूद मुझमें 
इस कदर जगा गई 
वह अपना एहसास मुझमें 
कि मुझे और किसी का ख्याल ही नहीं रहा 
और जब आंख खुली तो कोई नहीं था 
हजारों लाखों के बीच में 
मैं बिल्कुल तन्हा था 
जैसे कोई नुमाइश की चीज 
मेरी आंखों में आंसू थे 
और लोग तालियां बजा रहे थे 
सुकून था मुझे फिर भी 
चाहे मजबूरी सही 
वह इस अभिनय को 
एक जीवंत रूप दे चुके थे 
फर्क सिर्फ इतना था 
कि उसका नायक मैं नहीं
कोई और था

गजल

साकिया मय तेरी नजरों से पिया जाएगा 
मौत आ जाए मगर फिर भी जिया जाएगा 
कुछ ना कहना जो तेरे पास में आ जाऊं अगर 
बात नज़रों से होगी लव को सिया जाएगा
अभी जी भर के पीला पीने से ना रोक मुझे 
कभी सोचेंगे कभी छोड़ दिया जाएगा 
अभी भुला दे मगर जब मैं चला जाऊंगा 
नाम मेरा तेरी महफिल में लिया जाएगा 
एक कयामत का दौर 'सहर' चला दे मुझ पर 
और फिर जो तू कहे बस वो किया जाएगा

Tuesday 7 May 2024

गीत

तेरे मिलन की आस है अब भी 
मुझे तेरी तलाश है अब भी
जो मुझे हर घड़ी सताया था
अपनी राहों से भी हटाया था
वही क्यों सबसे खास है अब भी  
मुझे तेरी तलाश है अब भी
बड़ी शोहरत भी मिली , दुनिया में
सारी खुशियां भी,मिली दुनिया में
मगर ये दिल उदास अब है भी 
मुझे तेरी तलाश है अब भी
जिंदगी लग गई अब दांव पर भी
उम्र है आखिरी पड़ाव पर भी
दिल को तेरी ही प्यास है अब भी 
मुझे तेरी तलाश है अब भी

गजल

छोड़कर तनहा चले जाते हो तुम 
बेरहम इतने क्यों,हो जाते हो तुम 
नींद मेरी चैन भी तुम ले गए 
खुद सुकून की नींद सो जाते हो तुम 
जान निकलने लगती है उस पल मेरी 
कोई आंसू जब भी रो जाते हो तुम 
आखिरी ख्वाहिश है जी भर देख लूं 
क्यों जहां की भीड़ खो जाते हो तुम 
खत्म हो जाने दो हूं बंजर जमीन 
प्रेम के क्यों बीज बो जाते हो तुम

गजल

कुछ इस सदा से अपनी मंजिलें सवार हूं मैं 
उनकी जुल्फों के तले जिंदगी गुजारूं मैं 
थोड़ा शर्माना झिझकना वो रूठना उनका 
वो हो जब दूर उन्हे प्यार से पुकारूं मैं 
कसम खुदा की अगर साथ उनका मिल जाए 
कभी न फिर किसी से इस जहां में हारूं मैं 
कुछ घड़ी यूं ही मेरे सामने वो बैठे रहे 
उन्हें आंखों के रास्ते में रूह में उतारूं मैं

बस इतना ही कहे

जब भी डूबता हूं 
ख्यालों के एहसास में 
चाहता हूं उचक कर साहिल को छू लूं 
कोशिश भी करता हूं 
तो पांव फिसल जाते हैं 
और हम दरिया में रह जाते हैं 
हमारी सांसे ही शायद हमारा साथ न दें 
पर एक उम्मीद ने दामन जो थाम रखा है 
कोई तो आएगा मेरा भी सहारा बनकर 
और उफनते हुए इस दिल का 
किनारा बनकर 
ढूंढता हूं मैं जिसे चांद और तारे में 
सोचता काश कभी वो भी मेरे बारे में
कितनी ही ठोकरें खाई है इस जमाने में 
कसर किसी ने भी छोड़ी न आजमाने
उम्र भर जख्म मिले 
और हम तड़पते रहे 
उनकी बस एक झलक के लिए तरसते रहे 
सुकून मिल जाता मुझे गम नहीं होता कोई 
कुछ न करता तो कोई आकर बस इतना ही कहे 
आज से हम भी तेरे साथ रहे 
आज से हम भी तेरे साथ रहे

गजल

इश्क जबसे  जवान हो गया यह 
क्या कहें हवा भी तूफान हो गया 
वफा करके भी हम बदनाम रहे 
वो गुसताखियां करके महान हो गया
कत्ल करके मेरा मासूमियत से 
देखो कैसे वो नादान हो गया 
चाहता जब भी है ठुकरा के चला जाता है 
जैसे मैं खेल का मैदान हो गया
कसूर किसको दूं 'सहर' तुम्हारे चक्कर में 
अब तो यह शहर भी शमशान हो गया

गजल

हर घड़ी मुझको यह एहसास हुआ करता है 
तेरा वजूद मेरे साथ हुआ करता है 
मौत मिल जाए मुझे दूरियां तुमसे ना बढ़े 
रात दिन रब से मेरा दिल यह दुआ करता है 
अब तो बढ़ने लगे हैं कितने ही दुश्मन अपने 
अपनी राहों में देखो कौन धुंआ करता है 
कितनी बेचैन है धड़कन ये देखो ख्वाब में भी 
सिर्फ और सिर्फ तेरे साथ हुआ करता है 
जख्मों को भी मेरे अक्सर सुकून  मिल जाता है 
कोई चुपके से मेरा हाथ छुआ करता है 
मुझ में होकर भी मेरे होने का एहसास नहीं
बेरहम कैसा 'सहर' प्यार हुआ करता है

गजल

ऐसा एक लम्हा बेखबर आया 
जिंदगी उनके नाम कर आया 
उसने बर्बाद कर दिया न जाने कितनों को 
सारा इल्जाम मेरे कर आया 
सोचा था दूर चला जाऊं उसकी दुनिया से 
हर एक कदम पर उसका घर आया 
खुदा से पहले लब पे नाम उसका आता है 
हादसा पेश ये अक्सर आया 
काश अपना उसे बना सकते 
पर कोई वक्त ना बेहतर आया

गजल

सारी दुनिया को ही डुबोया है 
आज एक शख्स इतना रोया है 
उसकी धड़कन में अब है सांस नहीं 
समझ सब समझते हैं कि वह सोया है 
हजारों टुकड़ों में बिखरा पड़ा था मेरा वजूद 
उसने एक धागे में पिरोया है 
मैं उसका क्यों ना रहूं जिसकी सूनी आंखों ने
आज दामन मेरा भिगोया है 
अब ना जी पाएंगे 'सहर' बिना उसके एक पल 
बिछड़ के उसको मैंने जिंदगी को खोया है

Sunday 5 May 2024

एक दीवाना था

सुना है 
कि एक दीवाना था जिसने 
तुम्हारी याद में तड़प तड़प कर 
अपना दम तोड़ दिया था
सुना है 
कि उसके आंसुओं से बनी 
एक नदी आज भी वहां बहती है 
सुना है 
कि उस नदी के पानी में 
आज भी इतना दर्द है 
कि उसकी सिर्फ एक बूंद से ही 
हर कोई घुटकर अपना दम तोड़ दे 
जाओ जाकर छू लो  जरा 
एक बार उस जहरीले पानी को 
शायद अमृत बन जाए...

एक बूंद

एक दिन
गर्मी की तपिस में 
तुम्हारे से माथे से निकली हुई पसीने की वह एक बूंद 
किस कदर तुम्हारे जिस्म को शराबोर करती हुई 
समा गई थी 
इस बंदर जमीन में
उसी बूंद से निकला है 
यह पौधा शायद 
जो आज एक पेड़ बन चुका है
तब बहुत गमजदा था मैं 
कि तुम्हारे पलकों की 
एक छांव न पा सका 
मगर आज खुश हूं 
कि जिस पेड़ की छांव में मैं हूं 
वह तुम्हारी बूंद से है

गजल

खुद को खुद से जुदा किया हमने 
प्यार जब से तुझे किया हमने 
याद में जब से तुम समाये हो 
यह जमाना भुला दिया हमने 
नजर को तुम ही तुम बस दिखते हो 
तुमको दिल में बसा लिया हमने 
मुद्दतों से तलाश थी तेरी 
आज तुझको भी पा लिया हमने 
अपना दुश्मन बनाया अपनों को 
प्यार में क्या नहीं किया हमने
अब तो नींदें भी नही चैन भी नही है 'सहर'
तुझे पाकर लगा,सब कुछ ही खो दिया हमने

गजल

हमने जब भी,शबाब देखा है 
बाखुदा , बेनकाब देखा है 
मेरे पहलू में उसका साया था 
आज ऐसा ही ख्वाब देखा है 
खुली जुल्फें तेरी बादल की घटा लगती है 
होठ जैसे गुलाब देखा है 
सभी मदहोश थे तेरी नशीली आंखों से 
मैंने छलका शराब देखा है 
चाल दिलकश तेरी 'सहर' हंसी घुंघरू की तरह 
हर अदा लाजवाब देखा है

तुझे देखने के बाद

कैसा हुआ असर है तुझे देखने के बाद 
यह शहर बेखबर है तुझे देखने के बाद 
हैरत मुझे होती है क्यों हर एक शख्स की 
तुझ पर टिकी नजर है तुझे देखने के बाद 
सब जहर पी रहे हैं दवा जानकर फिर भी 
कहते हैं हम अमर हैं तुझे देखने के बाद 
यह लोग कह रहे हैं मेरा कत्ल हो गया 
मुझको नहीं खबर है तुझे देखने के बाद 
हमको ना भूल जाए कहीं यह जहां 'सहर'
कुदरत को भी यह डर है तुझे देखने के बाद

Thursday 2 May 2024

गजल

यह ना समझो कि दुनिया से डर जाएंगे 
तुमको खो देंगे हम और मर जाएंगे 
चाहे लूट जाएंगे चाहे मिट जाएंगे 
तेरी महफिल में हम बेखबर जाएंगे 
तेरी सांसों से आएगी खुशबू मेरी 
तेरे दामन में हम यूं बिखर जाएंगे 
मंजिलें भी कभी हमको मिल जाएगी 
कब तलक यूं ही हम दर-बदर जाएंगे 
मेरा दिल मेरे बस में नहीं आजकल 
जिंदगी भी तेरे नाम कर जाएंगे

गीत

वह जमाना मुझे याद आने लगा 
हर फ़साना तेरा याद आने लगा 
चांद की चांदनी मखमली देखकर 
बागों में कोई खिलती कली देख कर 
मुस्कुराना तेरा याद आने लगा ....
अपने घर से निकलना वो डर के तेरा 
मुझसे मिलने का वादा वो करके तेरा 
भूल जाना तेरा याद आने लगा ....
होके दीवाना जब मैं तेरी बातों से 
अपनी आंखें मिलाई तेरी आंखों से 
मुंह छुपाना तेरा याद आने लगा ....
देख ली 'सहर'की तुमने मजबूरियां 
तुमसे बढ़ने लगी जब मेरी दूरियां 
मुड़के आना तेरा याद आने लगा ....

गीत

गुजरे हुए लम्हों की मुझे याद जब भी आई 
मेरा दिल धड़क रहा था क्या बात हो रही थी 
काली घटा थी छाई बरसात हो रही थी 
खामोश थी जुबाँ फिर भी बात हो रही थी 
कुछ इस कदर से बेखबर वह साथ थी मेरे 
इसका भी था पता नहीं कि रात हो रही थी...
मेरे साथ जब भी उसकी मुलाकात हो रही थी 
तब देखकर वो मंजर दुनिया क्यों जल रही थी 
दुनिया यह चीज क्या है कहो छोड़ दूं उसे 
क्यों छोड़ दूं उसे जो मेरे साथ रो रही थी...
नजरों से मेरे दूर वो रुखसत जब हो रही थी 
अरमान मचल रहे थे मेरी सांस रो रही थी
आंखों से न जाने मेरी क्या'सहर'चल पड़ा 
ऐसा लगा सावन की , बरसात हो रही थी

कुछ ऐसे भी लोग

उसकी यादों के घर को 
तिनका तिनका एक करके बनाया था 
मैं शायद बहुत खुश रहता 
अगर उसे तूफान का 
वह झोंका लेकर ना उड़ता 
और मेरे ख्वाबों का खून नहीं करता 
पर उसे क्या ?
बनाने से पहले ही मिटा दिया 
जब धीरे-धीरे वह मेरे करीब आई तो 
मैंने मेहमान समझ कर 
उसे अपने दिल में जगह दी 
मेरी हर धड़कन हर सांस 
उसकी ही होकर रह गई
फिर अचानक रात के सन्नाटे में 
न जाने वह कहां खो गई 
बहुत ढूंढा उसे और जब मिली 
तो पता चला कि 
वह किसी और की हो गई 
पलकें बोझल,थी दिल उदास था 
मैंने दिल को बहुत 
समझाया और तसल्ली दी कि 
अफसोस ना करे 
दुनिया में ऐसे भी प्यार करने वाले होते हैं 
जो प्यार को सौदा समझते हैं 
और दिल को खिलौना

कहां चांद कहां मैं

जिंदगी से हार कर 
जब बंद कर ली थी 
मैंने अपनी आंखें 
आंख खुली तो 
उसका मासूम चेहरा दिखा 
फिर मुझमें 
जीने की उम्मीद जगी 
शायद उसने समझा 
कि कोई उसके आसरे पर 
जीना चाहता है 
उसने एक पल में मेरा दिल तोड़ दिया और छुप गया 
टूट चुका था मैं बेबस था 
आती जाती सड़कों के 
सन्नाटे को देखकर 
खामोशी से रोता रहा 
शायद मेरी बेबसी देखकर 
उससे भी रहा नहीं गया 
और छुपकर वह भी रोने लगा उसके अश्कों जब भीगा  
तो तसल्ली हुई कि 
मेरे गम को भी 
कोई समझता है शायद 
उसकी अश्कों से पूरी
तरह भीग गया तो 
वह मेरी बेबसी देखकर मुस्कुराने लगा 
तब मुझे एहसास हुआ 
कि उसे पाने की चाह 
मेरा पागलपन था 
कहां चांद और कहां है मैं...

एक दुल्हन

चली जा रही थी डोली 
सिसकियां गूंज रही थी 
सर से पांव तक सजी 
सुर्ख लाल जोड़े में 
उस दुल्हन की 
जो कल तक चंचल थी 
हंसती थी 
हर छोटी-छोटी बातों पर 
अपनी सखियों के साथ 
आज उनसे 
दूर मां-बाप और भाई के 
प्यार से बिछड़ कर 
एक अनजान सी दुनिया की ओर 
गुमसुम थी 
अपने अतीत की यादों को लेकर 
एक घर को सूना करके 
दूसरे घर को आबाद करने 
चली जा रही थी डोली..... 
कौन समझता उसके दर्द को 
जो बैठी थी बिल्कुल अकेली 
अपने अरमानों का खून करके 
अपनी मर्यादा के आगे मजबूर होकर 
जिस आंगन में पलकर बड़ी हुई 
उसे छोड़कर 
मां बाप की गोद को सूना करके 
और उसे भाई को जिसने 
उसे हर पल प्यार दिया खुशियां दी  
उसे एक पल में रुला कर 
चली जा रही थी डोली.....

Wednesday 1 May 2024

टूटा सपना


सपन सलोना देखा मैंने 
तुझको अपना देखा मैंने 
बहुत हंसी मंजर था वह 
जब दर्द भरी तन्हाई थी 
अंधेरी रातों में 
भीगी भीगी सी बारिश भी थी 
तुमसे मिलने की इस दिल में 
थोड़ी सी ख्वाहिश भी थी 
हर लम्हा यह सोचा मैंने 
कदम बढ़ाकर तुमको छू लूं 
तेरी सूरत कैसे भूलूं
 टीस ऊभरती है इस दिल में 
पड़ा था मैं कैसी मुश्किल में 
लाख बचाया मैंने दामन 
आ ही गया तेरी महफिल में 
यहां आने के बाद ऐसा लगा 
जैसे और कोई जन्नत ही नहीं 
तेरे मैखाने से बढ़कर 
कसम खुदा की मैंने चाहा 
तुमको खुदा से भी बढ़कर 
सब कहते हैं दीवाना हूं 
जब वो कहे थे बेगाना 
तब आंखों में आंसू आए 
देखके फिर वो वापस आए 
दिल पे मेरे वो हाथ भी रखे 
फिर अपना दामन फैलाए 
अश्क भी पोछे थे तब हमने 
उनकी तरफ कुछ कदम बढ़ाए 
ठीक तभी था बादल गरजा 
मिलके भी उनसे मिल नहीं पाए 
आंख खुल गई थी अब मेरी 
टूटा सपना देखा मैंने 
तुझको अपना देखा मैंने 
तुझको अपना देखा मैंने...

पुकारता चला गया

लबों से उसका नाम मैं पुकारता चला गया 
नजर से उसको रुह में उतरता चला गया 
गिरे भी हम उठे भी हम थे लड़खड़ाए जब कदम 
आया कोई करीब था पकड़ लिए थे हाथ हम 
अच्छा लगा था कोई मुझे मारता चला गया .......
किया फिर एक सवाल वो 
कहां थी इतने रोज तुम 
इधर दिए हैं मर के हम 
क्या जानो दिल का बोझ तुम हुआ क्या उसे जीत कर 
मैं हरता चला गया .......
गमों का दर्द था शुरू 
कमी थी कुछ नहीं मुझे 
मिलन के आस थी मिलेंगे वो कहीं मुझे 
ये सोचकर मैं जिंदगी गुजरता चला गया...

कहां हो तुम


कहां हो तुम अपने जख्मों के दर्द दे दो मुझे 
हम उन्हें पलकों पर सजा लेंगे 
तेरे हर रंजो गम उठा लेंगे 
अब  ये एहसास हुआ 
मुझको तेरे जाने के बाद 
कि मुझमें तुम ही तो रहते थे 
मेरी जान बनकर 
मेरी राहों में एक 
जलता आशियां बनकर 
तुझे समझ ना सका 
भूल हो गई मुझसे 
बरसती रहती है 
आंखें मेरी तुम्हारे लिए 
तरसता रहता है 
बेताब दिल तुम्हारे लिए 
ऐसा लगता है कि अब जी ना सकेंगे तुम बिन 
बीती बातों को छुपाने के लिए अब शायद
लबों को सी न सकेंगे तुम बिन 
अब तो आ जाओ 
मेरी जिंदगी में आ जाओ 
मुझको जो भी सजा देना हो 
देने आ जाओ 
दर्द भी होगा तो हम कुछ ना कहेंगे 
तुमसे चाहे मिट जाएंगे 
पर उफ ना करेंगे तुमसे 
अब कभी कुछ ना कहेंगे तुमसे 
अब कभी कुछ ना कहेंगे तुमसे

तुमसे रिश्ता

न जाने कौन हो तुम 
तुमसे क्या रिश्ता है मेरा 
सोचता हूं कि पूछ लूं तुमसे 
मगर जब सामने आ जाते हो 
हर एक सवाल भूल जाता हूं 
तेरी आंखों में डूब जाता हूं 
जुस्तजू होती है फिर क्यों 
तुम्हारे जाने के बाद 
मैं तुमसे बात करूं 
तुम हमारे पास रहो 
न जाने क्यों मुझे लगते हो 
तुम खुदा की तरह 
खोलता हूं जो लब 
तो नाम तेरा आता है 
लोग कहते हैं कोई पागल है 
मैं सुनता हूं मगर 
फिर भी खुशी होती है 
क्योंकि तुम फिर भी मुझसे मिलते हो 
बात करते हो 
मेरे साथ-साथ रहते हो 
मुझे मालूम है 
तुम कल भी मिलने आओगे 
फिर क्यों शिद्दत से तेरा 
इंतजार करता हूं 
आज एहसास हुआ 
तू ही है सब कुछ मेरा 
आज एहसास हुआ 
तुझसे प्यार करता हूं...

तुझे देखने के बाद

कैसा हुआ असर है, तुझे देखने के बाद 
यह शहर बेखबर है, तुझे देखने के बाद 
हैरत मुझे होती है,क्यों हर एक शख्स की 
तुझ पर टिकी नजर है,तुझे देखने के बाद 
सब जहर पी रहे हैं दवा जानके फिर भी 
कहते हैं हम अमर हैं,तुझे देखने के बाद 
यह लोग कह रहे हैं , मेरा कत्ल हो गया 
मुझको नहीं खबर है तुझे देखने के बाद 
हमको ना भूल जाए कहीं , ये जहां 'सहर'
कुदरत को भी ये डर है,तुझे देखने के बाद

Tuesday 30 April 2024

गजल

मेरी आंखों में कोई अश्क अब ठहरता नहीं 
टूटा है दिल , मगर बिखरता नहीं
फैसला हो कोई तो मुझको सुना दे बेशक 
सहमा सहमा सा हूं पर डरता नहीं 
कतरा कतरा ही सही साल कई बीत गए 
भूल पाता नहीं तुझको मैं याद करता नहीं
सभी उम्मीद तुमसे जिंदगी की करते हैं 
तेरे बगैर कोई मरता नहीं 
पहले हर रोज ही 'सहर'वो मिलने आते थे 
अब इधर से कोई गुजरता नहीं

गीत

रुठी रुठी सी है मंजिले हमसे क्यों 
जिंदगी में मेरी आप आए नहीं 
हाल दिल का मेरे आप समझे नहीं 
इस नजर के इशारे को समझे नहीं 
इस कदर रूठ कर आप जाने लगे 
हम बुलाए मगर आप आए नहीं.
साथ मेरे कभी आप रहते नहीं 
प्यार की भी कोई बात,करते नहीं 
कैसे कर लूं यकीन आप मेरे हुए 
मेरे सर की कसम आप खाए नहीं 
दिल के जज्बात मुझमें ठहरते नहीं 
लड़खड़ाए कदम  गर संभलते नहीं 
कैसे मैं मान लूं कि मैं मदहोश हूं 
दिल पे बनके नशा आप छाए नहीं

चाहत

चाहता है क्यों दिल,हमसे कोई इजहार करें 
मैं उससे प्यार करूं , वह मुझसे प्यार करें 
घटाएं कहती हैं फिर, झूम-झूम कर मुझसे 
ये जरूरी तो नहीं, वह भी तुमसे प्यार करें 
आ गया दिल को समझ,प्यार कोई सौदा नहीं है 
वह करें या ना करें, हम ही उनसे प्यार करें 
मंजिले हैं जुदा फिर भी ये खयाल है दिल में 
हम उन्हें प्यार करें, प्यार करें , प्यार करें ...
कुछ भी हो जाने का, हमको ना कोई गम होगा 
कभी हम खुद की सोचें,खुद से कभी प्यार करें 
प्यासे रह जाएंगे हम उम्र-भर , खुशी के लिए
अगर यह जिद है हमें,वह भी हमसे प्यार करें 
अब तो आने लगी है मुझमें तहजीब 'सहर' 
मेरी अब चाह नहीं वह भी मुझसे प्यार करें

गजल

चांद सूरज अपने बाराती रहे 
और बहारें फुल बरसाती रहे 
हर तरफ शहनाइयां बजती रहे 
यह जमी भी झूमकर गाती रहे 
इस कदर खुशियां , हमारे साथ हो 
दुख की हर एक ही,लहर जाती रहे 
जब कभी घूंघट उठाऊं , मैं तेरा
तूं झुकाए पलकें , शरमाती रहे 
सारे बंधन तोड़ कर आ जाऊंगा 
जो तेरी मुझ तक सदा आती रहे

गजल

अपने रुख पर कोई पर्दा न करो 
मेरी चाहत को यूं रुसवा ना करो 
धनक के रंग सभी , तुझमें उतर आए हैं 
सादगी अच्छी है,तेरी कोई सजदा ना करो 
कहीं यह लोग न बदनाम, तुझे कर जाएं 
सबसे यूं खुल कर तुम , मिला ना करो 
लोग अफसाना बना देते हैं,हर बातों का 
दिल की बातें सबसे , कहा ना करो 
मेरी चाहत का भी,कुछ तो'सहर' ख्याल करो 
अजनबी जैसे मेरे साथ, तुम रहा ना करो

वो एक पल


वो एक पल 
जो एहसास दिलाता है, 
मेरे पास तुम्हारी मौजूदगी का 
वो एक पल
जो न जाने कब चुपके से 
मेरी जिंदगी का हिस्सा बन गया
वो एक पल 
जो अब शायद मेरे हर दर्द की 
दवा भी बन गया है 
वो एक पल 
जो मेरे आशियाने को रोशन करके 
इसकी फिजां में खुशबू बिखेर देता है 
वो एक पल 
जो ना जाने कितनी ही 
खुशियां दे जाता है मुझे 
वो एक पल 
जिनसे न जाने कितनी उम्मीदें जोड़ रखी है मैंने 
तुम यह सब जानकर भी 
दुनिया की भीड़ में इस कदर क्यों खो जाते हो, 
कि नहीं निकाल पाते मेरे लिए वो एक पल 
सिर्फ एक पल 
आखिर क्यों???

इंतजार

कितनी आस्था,से विश्वास से 
अपने मन के मंदिर में बिठाकर पूजता रहा, तुम्हें!
किसी देवता की तरह 
एक उम्र से महसूस कर रहा हूं  तुम्हारी खुशबू 
अपनी सांसों में
मुझे कल की तरह आज भी इंतजार है
तुम्हारी एक स्नेहमयी स्पर्श की 
बिल्कुल उसी तरह 
जैसे किसी पतझड़ को 
इंतजार रहता है 
सावन के एक बूंद की...

Saturday 27 April 2024

दिल से दूर कहीं

ले जाओ अपनी यादों को दिल से दूर कहीं 
और जीने दो चैन से मुझे भी
हर पल बेचैन होकर सोचता हूं 
सिर्फ तुम्हे!
क्यों सताते हो इस कदर मुझे 
क्यों रुलाते हो बेवजह
एक पल का सुकून मैं भी चाहता हूं 
ले जाओ अपनी यादों को दिल से दूर कहीं....
सुना था कि डर के आगे जीत है
मगर जितनी बार भी तुमने 
लोगों से डरने की बात की 
उतनी बार मैं हारता गया और
अपने अंदर बन रहे नासूर को
संजोता गया
फिर भी अगर तुम कहते हो कि 
वक्त आएगा कभी अपने मिलन का भी
तो मैं इंतजार करूंगा उस वक्त का 
अपनी आखिरी सांस तक 
लेकिन तब तक मेरी सांसे चलें
ले जाओ अपनी यादों को दिल से दूर कहीं....
नहीं निकलता अब कोई लब्ज़ मुझसे 
तेरी आवाज के बिना 
मुश्किल लगता है हर एक पल 
तुम्हारे साथ के बिना
मैं नहीं चाहता कि 
मेरी वजह से तुम बदनाम हो 
पर इसे तुम 
मेरा पागलपन समझो या दीवानगी
तुमसे मिलकर भूल जाता हूं 
के अपने बीच कोई और भी है 
और तुम ना चाहते हुए भी मेरा साथ देती हो
बहुत सितम किए हैं शायद मैंने तुम पर
जिसकी सजा खुद को दे रहा हूं 
तुम्हारे बगैर हर पल सालों की तरह गुजर रहा है 
इससे भी बड़ी कोई सजा है तो दे दो मगर
ले जाओ अपनी यादों को दिल से दूर कहीं....







एक गुड़िया

अभी चंद रोज पहले जो एक गुड़िया थी
मां-बाप और भाई सबकी लाडली
सबके पलकों पर रहा करती थी
वह गुड़िया जो सुबह से शाम 
एक कर देती थी अपने घर को 
स्वर्ग बनाने में
लेकिन आखिर कब तक 
एक दिन तो उसे जाना ही था
और वह चली गई 
मां-बाप और भाई सबको रोता हुआ छोड़कर 
वह चल गई
शायद यही तक का साथ था उसका उनसे
पर अब वह जिस घर में गई थी 
यही उसका अपना घर था 
उसके पिया का घर
जिसे संवारने के लिए 
वह अपनी हर एक सांस 
कुर्बान करने को तैयार थी
क्योंकि अब वह एक गुड़िया नहीं 
बल्कि एक आदर्श पत्नी बन चुकी थी 
जिसके अंदर कूट-कूट कर भरा हुआ था 
वह संस्कार- पति परमेश्वरम 
फिर क्यों छीन ली गई,उसके होठों से हंसी
जो गम में भी मुस्कुराना जानती थी 
क्यों तोड़ दिए गए उसके पैर, 
जिससे वह अपने बूढ़े सास ससुर की सेवा में 
चलना चाहती थी दो कदम 
क्यों काट डाले गए उसके हाथ 
जिनसे वह घर के बिखरे हुए सामानों को 
सलिके से सजा कर रखना चाहती थी
क्यों फोड़ डाली गई उसकी आंखें 
जिनसे वह अपने घर को 
स्वर्ग से भी सुंदर बनाने के 
सपना देखा करती थी
क्यों छीन ली गई उससे,उसकी आखरी सांस भी
जिसकी हर सांस में 
अपने घर की खुशियों के लिए 
दुआएं हुआ करती थी 
और कब तक?
सिर्फ चंद सिक्कों के लिए छीनी जाती रहेगी 
ऐसे ही हजारों-लाखों गुड़ियाओं की जिंदगी 
आखिर कब तक???

दास्तां

कैसे बयां करूं दास्तां 
मैं अपने दिल की
ख्वाहिश नहीं थी 
कि तुम्हारे सामने लब खोलूं...
कितनी हसरत और उम्मीद लिए 
मैं मिला था तुमसे
संभल जाता मैं खुद से ही
उस दिन भी शायद
अगर तुमने मेरी तरफ 
अपना हाथ ना बढ़ाया होता 
मैं यूं ही तुम्हारी तरफ 
खींचता नहीं चला गया होता 
अगर तुमने चाहत भरी नजरों से 
मुझे देखा ना होता 
मैं तुम्हारे जितना ही करीब गया
तुम मुझसे उतना ही दूर होने लगी
फिर भी मुझे तुमसे कोई गिला नहीं 
यही लिखा था मेरी किस्मत में शायद 
कि मैं तुम्हारे लिए दुनिया छोड़कर आया था 
और तुमने दुनिया के लिए 
मुझे ही छोड़ दिया.....

इल्जाम

दरों- दीवार पर इल्जाम,अब लगाया ना करो
मेरे सर की यूं ही, झूठी कसम खाया ना करो
तुमको दुनिया में खुदा मान कर, पूजा है तुम्हे
मेरी नजरों में ही, तुम खुद को गिराया न करो
तुम ही से रोशनी और चांदनी, मिलती है मुझे
अपनी सूरत को कभी मुझसे, छुपाया न करो 
गर शिकायत है मुझसे, तो करो शिकवे मुझे
अपना गुस्सा यूं चूड़ियों पर,जताया ना करो
कहीं पागल न कर दे, देखना 'सहर' तेरा
यूं लगातार निगाहों को, मिलाया न करो

जबसे उनसे नजर मिल गई है

यह जहां अच्छा लगने लगा है
जबसे उनसे नजरमिल गई है 
पहले नजरे चुराते थे, हमसे सभी
आस थी कोई हमसे भी,मिलता कभी
पर जहां ना सुना,ना खुदा ही सुना
उनसे मिलने पर फिर ये असर क्या हुआ
हर कोई बात करने लगा है,
जबसे उनसे नजरमिल गई है....
हम तो हर रोज उनको ही,देखा किए
जाने कैसे उन्हें अपना, दिल दे दिए
मुझको यह ना पता है,ये क्या हो गया 
अपने ही आपसे मैं जुदा हो गया 
अब तो गम के अंधेरे का ही आस था
कैसे फिर चांद ढलने लगा है 
जबसे उनसे नजरमिल गई है....


एक बार मिलो

रहना तन्हा लगे बेकार, तो एक बार मिलो
तुम्हें आ जाए मुझपे प्यार,तो एक बार मिलो
चाहता हूं बहुत सिद्दत से, मेरी जाने वफ़ा 
अगर हो तुमको ऐतबार,तो एक बार मिलो
दरमियां अपने और तुम्हारे,ये दुनिया वाले 
जब उठाने लगे दीवार, तो एक बार मिलो
गमों का दौर जब आए, तुम्हारी किस्मत  में 
शुरू हो अश्कों की बौछार,तो एक बार मिलो
जब डराने लगे यह आईना,'सहर' तुमको 
जिन होने लगे दुश्वार, तो एक बार मिलो।



कुछ बात तो थी उसमें....

कुछ बात तो थी उसमें,पर हम ना समझ पाए 
हमें प्यार भी था उससे, उससे ही न कह पाए
चुप रहना भी मुश्किल था,कुछ कहना भी मुश्किल था 
आंखों में नमी उसकी, मुझे सहना भी मुश्किल था
बस एक नजर हमने,देखी थी झलक उसकी
तन्हा ही गया आखिर,वह आया भी तन्हा था 
चाहा था उसे रोकूं ,पर रोक नहीं पाया
जिस बात का डर था मुझे,अंजाम वही आया 
जाता हूं जहां भी मैं,खलती है कमी उसकी 
दिल भरता भी है आहे,उम्मीद लिए उसकी 
आ जाए कहीं वो नजर,गुजरी है कई रातें 
राहें उसकी तकते, थक जाती है ये आंखें
आ जाता तो मैं उसका,हर गम अपना लेता 
मुझे ना हो फिर बिछड़े, सांसों में बसा लेता 
यही चाह है मैं उसको, खुदा अपना बना लेता 
हर ओर है एक सहरा, कोई फूल कहीं खिलता 
उसे अपना बना लेते, एक बार तो वो मिलता
एक बार तो वो मिलता....

Thursday 25 April 2024

झूठा वादा

ना जाने कब खो गए
सारे एहसास 
एक बदगुमां सहरा में
बहुत चाहा था मैंने तुम्हें
तुमको तुमसे चुराने की कोशिश भी की
और जब तुम्हारे पास जाकर 
तुम्हारी आंखों में देखा 
तो उन में खुद को ही पाया 
उसे पल ऐसा लगा था
जैसे इस जहां की सारी खुशियां 
मेरे दामन में सिमट आई हैं 
फिर क्या हो गया तुम्हें 
तुमने मेरी तरफ एक नजर
देखना भी गवारा नहीं समझा
तुम ऐसे तो ना थे
मुझे सिर्फ यही बता देते कि 
तुमसे जिंदगी की उम्मीद लगाकर 
मैंने कौन सा गुनाह कर दिया था
आज नहीं होता दर्द मुझे,किसी भी जख्म से 
नहीं होती कोई खुशी,दुनिया की हर ख्वाहिश 
पूरी होने पर भी
समझ में नहीं आता कि 
किन यादों के सहारे अब रहूं मैं
कम से कम साथ देने का एक झूठा वादा ही कर देते
फिर मुझे छोड़कर चाहे कहीं भी चले जाते 
मैं तुम्हारे आने के इंतजार में 
पलके बछाए
हंस के पूरी जिंदगी गुजार देता...

Wednesday 24 April 2024

स्पर्श

आ जाओ कभी बादल बनकर 
सावन के मौसम में 
कहीं दूर-दूर तक मेरी कल्पनाओ ने 
सोचा है,तुम्हें जिस रूप में..
अगर चाहते हो कि तुम्हें मैं भी ना देख पाऊं
तो आ जाना चुपके से किसी रोज
जब मैं गहरी नींद में रहूं 
पर इतने करीब जरूर आना कि 
मैं तुम्हारी सांसो को अपनी सांसो में
महसूस कर सकूं...
मैं बंद रखूंगा अपनी आखें
तुम्हारे आने से पहले 
तुम्हारी ख्वाहिश में....
संसार की हर वेदनाओं को 
सहने को तैयार मुझे इंतजार है 
सिर्फ तुम्हारी एक स्नेहमयी स्पर्श की...


वक्त

ये वक्त,जो बहुत ही कीमती है 
सबके लिए,खासकर तुम्हारे लिए 
जो बचाती हो,अपना हर एक पल
बड़े सलीके से...
और इधर मैं...
न जाने क्यों पागलों की तरह 
एक नाकाम सी कोशिश करता हूं 
तुम्हारे उन पलों से कुछ पल चुराने की
शायद इस चाह में,कि तुम्हारे साथ गुजारे 
कुछ पल,मुझे भी जीने के काबिल बना दे 
मगर एक अजीब सी घुटन होती है मुझे 
तुम्हारे उस एक पल के बिना
मुझे खुशी है जिस तरह से तुम 
अपना हर वक्त बचा रही हो
लेकिन मुझे नजरंदाज़ करके कहीं ऐसा ना हो 
कि तुम्हारे पास सिर्फ वक्त ही वक्त हो
और मैं दूर-दूर तक 
उनमें कहीं रहूं ही नहीं...


Tuesday 23 April 2024

सच्ची मुहब्बत

अच्छे नहीं लगता अश्क मुझे 
आंखों को न ऐसे बहने दे 
पर दिल में तेरे चाहे जो भी हो 
उल्फत का भरम अभी रहने दे
मैंने कभी तुमसे प्यार किया 
जिसका तुमसे इजहार किया
तुमने खुलकर कभी हां न कहा 
ना ही खुलकर इनकार कया
फिर दर्द मिला जो तुमसे मुझे 
मुझको ही अकेले सहने दे 
मुझे सिर्फ अकेले रहने दे 
यू लव अपना नहीं सी होती 
एक पहल किसी से की होती 
मेरे बारे में कुछ तो कहा होता 
मेरी बात किसी से की होती
उम्मीदों का पत्ता हिल जाता 
आशाओं की कलियां खिल जाती 
यह बात उन्हीं से कह देते 
हमे राह जहां से मिल जाती 
कोई पहल कभी तो की होती 
चाहती कमी कोई खल न सके 
सांचे में मेरे तुम ढल ना सके 
चाहा था तू मेरे साथ रहे 
तुम साथ हमारे चल न सके
वह प्यार जिसे सब जान सके 
तुम ऐसी मोहब्बत कर ना सके 
ना जाने किससे डरते रहे 
एक सच्ची मोहब्बत कर न सके...
तुम मुझसे मोहब्बत कर न सके....


गजल 2

मैं हूं बेताब उनका हाल ए दिल सुनने के लिए
अगर सुना दे तो दिल को करार आ जाए 
मैंने तन्हाई के लम्हे गुजारे पतझड़ में 
वो जो हंस दे तो खिजां में बहार आ जाए 
प्यार दिल में ही किया पर जुबां से कुछ न कहा 
मैं समझता था शायद उनको समझ आ जाए
अपने घर का भी पता भूल गया हूं मैं अब 
वही दिखते हैं हर जगह तो हम कहां जाएं 
उनके सजदे पे जो अरमान दिल में है मेरे 
मुझे डर है कि उन्हें देख कर ना आ जाए
प्यार इस आप पर 'सहर' मैं उनसे करता रहा 
शायद उनको भी कभी मुझपे प्यार आ जाए।

गजल

मेरी जिंदगीके वीराने सफर में,
अगर साथ दोगे मेरे साथ आओ
न समझो गंवारा अगर इस सफर को
तो गम सारे अपने मुझे देकर जाओ
तुम्हें मैं भुला दूं यह मुमकिन नहीं है
तेरे बस में हो तो मुझे भूल जाओ 
यकीनन मेरे पास आ जाओगे तुम
न अब दूर रह कर मुझे तुम सताओ
पुकारेंगी तुमको सहर मेरी नजरें 
यह पलकें झुका कर मेरे पास आओ।

सहर

'सहर' जो समंदर की 
उठती और गिरती हुई लहरों की तरह
अपने पूरे वजूद में दर्द संजोए हुए हैं 
देसी केवल वही समझता है,
महसूस करता है 
वह नहीं चाहता कि 
उसके दर्द को कोई जाने
इसलिए वह खामोश है,फिर भी
उसकी आंखों में निश्च्छल प्रेम है
उसकी आत्मा स्वच्छ है
अपने अंदर का चिराग 
वह हमेशा जलाए रखता है
अपना डर हमेशा खुला रखता है 
शायद इस चाह में कि 
कोई उसकी दिल की गहराईयों में भी
झांककर देखे कि क्या चीज़ है 'सहर'

एक आरजू

एक आरजू तुम्हें देखने की 
एक ख्वाहिश तुम्हें देखने की 
एक हसरत तुम्हारे साथ 
कुछ वक्त गुजारने की 
एक लम्हे की तलाश 
तुम्हारे जुल्फों तले,तुम्हारी गोद में 
सर रख कर सोने की
न जाने क्यों रहती है,हर वक्त मुझे
चाहता हूं कि लिखो कुछ तुम्हारे बारे में
लेकिन कलम बेजान सी हो जाती है 
और मुझे शब्द नहीं मिलते
काश कभी ऐसा होता 
किसी रोज तुम चुपके से आती 
मेरे दिल के पन्ने पर
शब्द बनकर खुश्बू की तरह बिखर जाती 
और बना देती मुझे भी एक कविता...

Friday 19 April 2024

भरोसा

कब तक दिल आओगे भरोसा 
इसी तरह हमें अपने झूठे वादों का 
कैसे दिल आओगे यकीन तुम 
खुद को मेरा होने का
न जाने कितने टुकड़ों मेंबिखेर दिया है 
तुमने मेरे वजूद को
अगर इन्हें समेटू भी 
तो जिंदगी शायद कम पड़ जाए
ऐसा लगता है जैसे मेरी 
अब ना कोई मंजिल है,ना राह है 
ना रोशनी है ना कोई हमराही है
जब तुम्हारे साथ चलते रहे
लगता था जैसे सारा जहां साथ है 
मगर आज मैं इस पूरी भीड़ में तन्हा हूं
घुटन है मुझे ऐसी जिंदगी से
मत बनो हमदर्द मेरा
शायद आदत पड़ गई थी मुझे इसकी
मगर अब सुकून महसूस कर रहा हूं
तुम्हारे बगैर भी
क्योंकि आज मैं तुम्हे सिर्फ याद करता हूं
तुम्हारा इंतजार नहीं....



कोई ख्वाबों में आता

कोई ख्वाबों में आता, कोई नींदें चुराता
मेरी सांसों में बसके,मुझे अपना बनाता
मैं जब तन्हा रहूं तो मेरी यादों में आकर 
कभी मुझको हंसना कभी मुझको रुलाता 
सफर में चलते-चलते कम जब लड़खड़ाते 
मुझे जब नींद आती तो आंचल में सुलाता 
मेरी हर बात सुनता मेरा हर गम समझता 
मेरी जब आंख भरती तो सीने से लगाता
भटक जाता कभी मैं 'सहर' जब अपने घर से
मुझे आवाज देकर वह फिर वापस बुलाता।

बेखबर लम्हा..

वो लम्हा कितना बेखबर होगा 
मेरे कंधों पर तेरा सर होगा 
कितनी खुशियां हमें दे जाएगा वो पल सोचो
चांद पर अपना एक घर होगा 
मेरे काधों पर तेरा सर होगा...
बहुत जलेंगे हमें देखकर दुनिया वाले 
जाने किस-किस पर क्या असर होगा 
मेरे काधों पर तेरा सर होगा...
मुझे क्यों लगता है कि तू ही सब कुछ मेरा
तुझसे कोई भी ना बेहतर होगा
मेरे काधों पर तेरा सर होगा...
मेरे हाथों में 'सहर' हाथ तेरा जब होगा
कितना दिलकश वो फिर सफर होगा 
मेरे काधों पर तेरा सर होगा...

कोई और बहाना कर देते

करना है जाता इनकार हमें 
कोई और बहाना कर देते 
तेरी राह से खुद हम हट जाते
एक बार इशारा कर देते....
समझा जो मेरे जज्बातों को 
जज्बात से खेला क्यों मेरे 
मैं भूल नहीं सकता वह दिन
एक सदमा दिया था तूने मुझे
मेरी बातों को तुम समझ सको 
एक तोहफा जो मैं दे दूं तुझको 
उम्मीद ना थी फिर जिसकी मुझे
तूने वो किया ऐसे क्यों किया
मुझे फिर भी तुमसे गिला नहीं 
तूने जो किया अच्छा ही किया 
लहजे ने किया तेरे ऐसा असर
मुझे होने लगी खुद से नफ़रत 
ये चोट मुझे किस जगह लगी 
कहीं और निशाना कर देते 
तेरी राह से खुद हम हट जाते
एक बार इशारा कर देते....
इस बात की हमको थी ना खबर 
कोई और था तेरे साथ अगर 
क्या होता तेरा क्या जाता तेरा 
यह बात भी  हमसे कह देते
दुख होता नहीं मुझको फिर हम 
कहीं और किनारा कर लेते 
तेरी राह से खुद हम हट जाते
 एक बार इशारा कर देते....
मुझे ऐसी मिली थी रुसवाई 
कि भाने लगी अब तन्हाई 
महसूस नहीं होती मुझको 
वो बात जो मुझ में थी पहले 
अब भूल गया हूं मैं सब कुछ 
भूलती ही नहीं तेरी बातें 
अब चाह नहीं कोई साथ रहे 
अब चाह नहीं कोई पास रहे 
अब चाहत है बस इतनी सी 
मैं तन्हा रहूं बस तन्हा रहूं 
जैसा तूने चाहा वैसा कहा 
एक बार जरा सोच होते 
इनकार के और भी रास्ते थे 
कोई और बहाना कर देते 
तेरी राह से खुद मत जाते 
एक बार इशारा कर देते....




तेरे बिन

जो भी है दिल में मेरे तुमसे अब कहूं कैसे 
तुम्ही  बता दो कि अब तेरे बिन रहूं कैसे 
हर कोई उंगलियां उठाता है,
आजकल हर कोई सताता है
कभी साए से चौंक जाता हूं
और कभी आईना डराता है 
जाने क्या हो गया है दिल को मेरे
जाने कैसा ख्यालआता है 
चैन मेरा चुराता है बेशक
और नींदें उड़ा ले जाता है 
रातें जगती हैं मेरी,सुबह जगा देता है
मेरे घर से ही मुझे दूर भगा देता है
है कितने जख्म मेरे दिल में,मैं कहूं कैसे 
तुम ही बता दो कि अब तेरे बिन रहूं कैसे...
सोचता हूं जो यह तो रूह कांप जाती है 
हादसा यह ना हो तुमसे मुझे बिछड़ना पड़े
हर एक पल तुम्हारी याद में फिर मरना पड़े 
दिल की बस एक ही हसरत भरी सदा है यही
तेरे मिलने से जिंदगी ठहर सी जाएगी 
तेरे बिछड़ने से शायद ये रह ना पाएगी 
मेरी सांसों में तू बसी है जिंदगी बनकर
तेरी जुदाई की एक बात भी सहूं कैसे 
तुम ही बता दो कि अब तेरे बिन रहूं कैसे...


मैं तन्हा ही जी लूंगा...

मत दे कोई तवज्जो ना बात करें मुझे 
आदत है तन्हा जीने की,मैं तन्हा ही जी लूंगा
मैं तन्हा ही जी लूंगा....
सुनी हो चाहे महफिल या खाली हो पमाना
 जब प्यार सताएगी मैं अश्कों को पी लूंगा
मैं तन्हा ही जी लूंगा....
तुम कत्ल मेरा कर दो,फिर भी मेरे कातिल का
कोई नाम जो पूछेगा मैं लव को भी सी लूंगा
मैं तन्हा ही जी लूंगा....
उलझन है तुम्हें मुझसे, तो छोड़ कर चली जा
ऐ रूह मेरी तेरा, अब नाम नही लूंगा।
मैं तन्हा ही जी लूंगा....

Saturday 13 April 2024

मेरे हमसफर

रूठना ना कभी ऐ मेरे हमसफर,
जान दे देंगे हम चाहते हो अगर।
गम तुम्हारे सभी मुझको दे दे खुदा,
सारी खुशियां मेरी तझको दे उम्रभर।
दर्द होता है जब तो हंसी आती है,
सब तुम्हारी दुवाओं का है ये असर।
मेरी मंजिल मिलेगी मुझे कब तलक,
यह बता दो कि कब खत्म होगा सफर।
अपनी आंखों में आंसू न लाना कभी, 
डूब जाएंगे हम रो दिए तुम अगर।

चाह थी मेरी...

चाह थी मेरी दौड़ कर उनका पकड़ लूं दामन,
लाख किया कोशिश लेकन मैं चल नहीं पाया
कहते थे वह आज नहीं कल मिलेंगे तुमसे,
सदियां बीत गई लेकिन वह कल नहीं आया
लाख किया कोशिश .......
दुनिया वाले साथ है मेरे लेकिन फिर भी
तन्हाई का खौफ ज़हन से टल नही पाया
लाख किया कोशिश.......
बहुत संभाल मैंने अपने अश्कों को फिर भी 
भीग गए बिन बारश के बादल नही आया
लाख किया कोशिश ........
उसके लिए तो मैंने खुद को बदल भी डाला
लेकिन मेरे सांचे में वह ढल नही पाया
लाख किया कोशिश ......

वो कातिल नज़र...

मेरे दिल  पर क्या कर गई है असर ,
वो कातिल निगाहें वो कातिल नज़र
दबी चाहतों को छुपाना भी मुश्किल और 
इस दिल का आलम बताना भी मुश्किल
बहुत चाहता हूं कि कह दूं मगर 
वो कातिल निगाहें वो कातिल नज़र....
तेरे दर से रुख अपना मोडू तो कैसे 
तेरा हाथ आखिर मैं छोड़ू तो कैसे
नहीं मंजिलें हैं नया है सफर
वो कातिल निगाहें वो कातिल नज़र...
मुझे जख्म देकर सताने लगे हो 
सुकूं चैन भी लेकर जाने लगे हो
सहर ये तेरी कैसी है रहगुजर 
वो कातिल निगाहें वो कातिल नज़र....