सबकी नज़र से नज़रें बचाकर मुझसे मिलने आ जाना
सूख रही है दिल की नदिया आके प्यास बुझा जाना
ढूंढ रही है तुझको निगाहें कहां हो तुम मनमीत मेरे
थमने लगी आवाज़ है मेरी कहां हो तुम संगीत मेरे
बिखर न जाऊँ पत्तों सा आके गले लगा जाना
सूख रही है…
तुम्हे छोड़ अब कोई नजारा नज़रों को नही भाता है
खुदा से पहले भी इस लब पर नाम तुम्हारा आता है
जिस्म हूं मै तु जान है मेरी छोड़के मुझको ना जाना
सूख रही है…
कहां चलूँ किस ओर चलूँ मै कौन सी मंजिल पाऊँगा
सब राहों की एक है मन्जिल पास तेरे आ जाऊँगा
थक जाऊँ जब नींद आये तो जुल्फ़ों तले सुला जाना
सूख रही है…