Friday 12 August 2022

क्या मिला तुझे....

बुझी बुझी सी जिंदगी जलाकर क्या मिला तुझे
 ये रेत थी तो राख फिर बनाकर क्या मिला तुझे
बुझी बुझी सी जिंदगी...
दिल था मेरा तुम्हारा ही,तूं दिल से खेलता रहा 
तूं खुश था मुझको तोड़कर, मैं दर्द खेलता रहा
मेरी वफा का तूने ये, कैसा दिया सिला मुझे
बुझी बुझी सी जिंदगी...
भटक रहे थे दर बदर, तुम्हारी ही तलाश में
गुजर रही थी जिंदगी,मिलन की तेरी आस में
जब आस हमने छोड़ दी तो फिर से क्यों मिला मुझे
बुझी बुझी सी जिंदगी.....
ये रूठने मनाने का भी दौर खत्म हो गया 
तू भी किसी की हो गई मैं भी किसी का हो गया 
भूली हुई वह दास्तां फिर याद ना दिला मुझे
बुझी बुझी सी जिंदगी...

फिर से ईश्क करते हैं


वही बिन बात के फिर से,
चलो लड़ना-झगड़ना,
कभी तुम रूठ जाओ,मैं मनाऊं मान जाना,
तुम्हारी खूबियों को मैं गिनाऊं,
तो मेरी गलतियों को तुम गिनाना,
वही एक दौर आओ फिर से जीते हैं,
चलो एक बार फिर से ईश्क करते हैं...
चलो एक बार फिर .....(क्रमशः)
                                        

Saturday 29 May 2021

आज भी देखा उसे....

आज भी  देखा उसे कल की तरह  ख्वाबों में,
जब भी आया है तो तड़पा के गया है वो मुझे।
उसकी आंखों से जाने क्या छलकता रहता है,
जब भी  देखा है वो मदहोश कर गया है मुझे।
हर  एक  चेहरे  में  उसकी  तलाश  करता हूँ,
मिला है जब से वो जाने क्या हो गया है  मुझे।
क्यों एक आह  सी उठती है सोच कर उसको,
लगा  है तीर  दिल के  पार कर  गया  है मुझे।
उसका  हर  पल 'सहर' खयाल में  मेरे आना, 
लगता  है  उसका दीवाना बना गया  है  मुझे।

Friday 27 July 2018

आईना



आईना धुँधला गया है,परछाइयों की तलाश में,


यह शदी इस कदर बदगुमां होगी यकीं न था ,


अब कोई नही देता दादाजी को ऐनक और दादी को हुक्का


रिश्तों की गहराई को नफरत की ऊँचाई ने पाट दिया है और अपनेपन को तो जैसे दीमक ने चाट दिया है, त्यौहारों पर पकवान की कोई खुशबू नही आती, शायद इसीलिए अब उनके होने की भनक भी नही आती, पहले परिवार में कुछ पड़ोसियों की भी गिनती थी, अब तो उसमें माँ-बाप भी नही आते।


आज भी याद है मुझे वो दिन 

जब बचपन में दादाजी के पैर दबाने के लिए,

बच्चे आपस में लड़ बैठते थे,फिर दादाजी के सुलह कराने के बाद, 

सब मिलकर शरीर का थोड़ा-थोड़ा हिस्सा दबाते थे।


जब कभी मन होता तो उन्हें घोड़ा बनाकर उनकी पीठ पर बैठकर मस्ती करते,


कभी उनके कुर्ते से बीड़ी निकालकर तो कभी मिट्टी वाली चिलम छुपाकर उन्हें परेशान भी करते।


आज भी याद है मुझे वो दिन 


जब हम दादी के पास इकट्ठे होकर,


परियों वाली एक ही कहानी हर रोज़ सुना करते थे, मगर आज तो सबकी अपनी-अपनी ही कहानी है

दादाजी भी  अकेला छोड़ गए

अब दादी के पास कोई नही बैठता, 


उनकी कहानियों में अब धूल की परत सी जम गयी है, 


शायद इसीलिए आईना धुँधला गया है.....


Saturday 9 December 2017

तुमसे मिलकर



मिलकर तुमसे  मैने  जाना, जीने  का अंदाज़ हो तुम ,

हंसी लबों पर हया आँख में,खाबों की परवाज़ हो तुम।

कदम-कदम पर ठोकर खाया,दुनिया से ना सम्भल सका,

तूने उठा दिया पल भर में,एक अनोखा राज़ हो तुम।

मिलकर तुमसे......

तेरी  यादों  के  बदले  में , मैने  सब  कुछ  तुम्हे  दिया,

चुप रहके सब कुछ कह डाला,निःशब्द कोई आवाज़ हो तुम।

मिलकर तुमसे......

आंखों में तस्वीर है तेरी,धड़कन में भी तुम्ही प्रिये,

हर आहट संगीत है तेरी,दिल का मेरे साज़ हो तुम।

मिलकर तुमसे......

Sunday 30 July 2017

मेरी बेटी

भीड़ में दुनिया की मैं,खुद को तन्हा पाता हूँ
समझ न  आने वाली , उलझने सुलझता हूँ
थका हारा हुआ पहुँचता हूँ,जब घर वापस
नन्ही बाँहों में उसकी,जाकर सिमट जाता हूँ
दूर हूँ उससे तो ,एहसास हो रहा है मुझे
बग़ैर उसके मैं तो , जीता हूँ न मरता हूँ
हाँ मैं मेरी बेटी से ,माँ की तरह प्यार करता हूँ।
हाँ मैं मेरी बेटी से ,माँ की तरह.....
वो पांच मिनट का निवाला,मुझे पचास मिनट में खिलाना
वो अपने दिनभर की बातें,मुझे देर रात तक सुनाना
उसके सर से जो कभी,हाथ मेरा हट जाए
तो नींद में भी रोते-रोते,पापा-पापा चिल्लाना
बड़ी होकर वो मुझसे दूर चली जायेगी
बस यही सोचकर दिनरात आह भरता हूँ
हाँ मैं मेरी बेटी से, माँ की तरह प्यार करता हूँ।
हाँ मैं मेरी बेटी से ,माँ की तरह....

Tuesday 16 May 2017

कोई अपना है

दूर कहीं से आहट आई लगता है कोई अपना है,
कहते हैं ये हवा के झोंके लगता है कोई अपना है।
खो गया है करार दिल का मारा -मारा फिरता हूँ,
किसने किया है हाल ये मेरा लगता है कोईअपना है।
सात समंदर पार बिठाकर मुझको तन्हा छोड़ दिया,
दिल उसे फिर भी दुआ देता है गता है कोई अपना है।
किसको निगाहें ढूंढ रही हैं किसकी बातें करती हैं,
किसकी याद रुला देती है लगता है कोई अपना है।
दर्द हमेशा ही देता है मुझको सताता है फिर भी,
उसपे हमेशा प्यार आता है लगता है कोई अपना है।