भीड़ में दुनिया की मैं,खुद को तन्हा पाता हूँ
समझ न आने वाली , उलझने सुलझता हूँ
थका हारा हुआ पहुँचता हूँ,जब घर वापस
नन्ही बाँहों में उसकी,जाकर सिमट जाता हूँ
दूर हूँ उससे तो ,एहसास हो रहा है मुझे
बग़ैर उसके मैं तो , जीता हूँ न मरता हूँ
हाँ मैं मेरी बेटी से ,माँ की तरह प्यार करता हूँ।
हाँ मैं मेरी बेटी से ,माँ की तरह.....
वो पांच मिनट का निवाला,मुझे पचास मिनट में खिलाना
वो अपने दिनभर की बातें,मुझे देर रात तक सुनाना
उसके सर से जो कभी,हाथ मेरा हट जाए
तो नींद में भी रोते-रोते,पापा-पापा चिल्लाना
बड़ी होकर वो मुझसे दूर चली जायेगी
बस यही सोचकर दिनरात आह भरता हूँ
हाँ मैं मेरी बेटी से, माँ की तरह प्यार करता हूँ।
हाँ मैं मेरी बेटी से ,माँ की तरह....
Sunday, 30 July 2017
मेरी बेटी
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