Tuesday 23 April 2024

सहर

'सहर' जो समंदर की 
उठती और गिरती हुई लहरों की तरह
अपने पूरे वजूद में दर्द संजोए हुए हैं 
देसी केवल वही समझता है,
महसूस करता है 
वह नहीं चाहता कि 
उसके दर्द को कोई जाने
इसलिए वह खामोश है,फिर भी
उसकी आंखों में निश्च्छल प्रेम है
उसकी आत्मा स्वच्छ है
अपने अंदर का चिराग 
वह हमेशा जलाए रखता है
अपना डर हमेशा खुला रखता है 
शायद इस चाह में कि 
कोई उसकी दिल की गहराईयों में भी
झांककर देखे कि क्या चीज़ है 'सहर'

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