Friday, 12 August 2022

क्या मिला तुझे....

बुझी बुझी सी जिंदगी जलाकर क्या मिला तुझे
 ये रेत थी तो राख फिर बनाकर क्या मिला तुझे
बुझी बुझी सी जिंदगी...
दिल था मेरा तुम्हारा ही,तूं दिल से खेलता रहा 
तूं खुश था मुझको तोड़कर, मैं दर्द खेलता रहा
मेरी वफा का तूने ये, कैसा दिया सिला मुझे
बुझी बुझी सी जिंदगी...
भटक रहे थे दर बदर, तुम्हारी ही तलाश में
गुजर रही थी जिंदगी,मिलन की तेरी आस में
जब आस हमने छोड़ दी तो फिर से क्यों मिला मुझे
बुझी बुझी सी जिंदगी.....
ये रूठने मनाने का भी दौर खत्म हो गया 
तू भी किसी की हो गई मैं भी किसी का हो गया 
भूली हुई वह दास्तां फिर याद ना दिला मुझे
बुझी बुझी सी जिंदगी...

फिर से ईश्क करते हैं


वही बिन बात के फिर से,
चलो लड़ना-झगड़ना,
कभी तुम रूठ जाओ,मैं मनाऊं मान जाना,
तुम्हारी खूबियों को मैं गिनाऊं,
तो मेरी गलतियों को तुम गिनाना,
वही एक दौर आओ फिर से जीते हैं,
चलो एक बार फिर से ईश्क करते हैं...
चलो एक बार फिर .....
उन्हीं गलियों से आओ फिर से गुजरें
उन्हीं गलियों में आओ गीत गाएं
वो चौराहे के बाजू वाले घर से
चुराकर गुल तेरी जुल्फें सजाएं
तेरे नखरे भी वैसे कम नही थे
तूं जैसे चाहे हम वैसे मनाए
बहुत याद आते हैं वो पल जो बीते हैं
चलो एक बार फिर से ईश्क करते हैं...