Wednesday 24 December 2014

दीवाली

वक़्त के थपेड़ों से 
और क़हर ढ़ाने वाले 
सूरज की चिलचिलाती धूप से
जूझकर हर साल की तरह
आ गई है दिवाली 
एक बार फिर से......
मगर इस बार
मेरी दिवाली भी फ़ीकी नही रहेगी
हर बार की तरह
जैसे तेज हवाओं से रहता था
मुझे बुझने का खौ़फ
मेरा वजूद मिटने का ख़ौफ़ 
पर, अब ऐसा नही होगा
क्योंकि 
रख दिया है किसी ने अपना हाथ
मेरे दामन पर
इस बार की दिवाली 
तुम भी आकर देखना
अपनी छत से मेरे आँगन में
इस बार की दिवाली 
मेरे दीपक की लौ भी सतरंगी होगी ।



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