Monday 2 April 2012

एक बूंद.......

एक दिन 
गर्मी की तपिश  में
तुम्हारे माथे से निकली हुई
पसीने की वो इक  बूंद
किस कदर तुम्हारे जिस्म को
सराबोर करती हुई समा गयी थी 
उस बंज़र ज़मीं में
उसी बूंद से निकला था 
यह पौधा शायद
जो आज एक पेड़ बन चुका है 
तब बहुत ग़मज़दा था मै
कि,तुम्हारे पलकों की एक छांव न पा सका
मगर आज सुकून है मुझे 
कि जिस पेड़ कि छाँव में मै हूँ
वो तेरी बूंद से है....

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