सपन सलोना देखा मैंने
उनको अपना देखा मैंने
बहुत हसीं मंज़र था वो
जब दर्द भरी तन्हाई थी
अँधेरी रातों में भीगी-भीगी सी
बारिश भी थी
उनसे मिलने की इस दिल में
थोड़ी सी ख्वाहिश भी थी
हर लम्हा ये मैंने सोचा
कदम बढाकर उनको छू लूँ
उनकी सूरत कैसे भूलूं
टीस उभरती थी इस दिल में
पड़ा था मै कैसी मुश्किल में
लाख बचाया मैंने दामन
आ ही गया उनकी महफ़िल में
आने के बाद यूँ लगा जैसे
और कोई ज़न्नत ही नहीं
उनके मैख़ाने से बढ़कर
कसम ख़ुदा की मैंने चाहा
उनको ख़ुदा से भी बढ़कर
सब कहते थे दीवाना हूँ
कहने लगे वो बेगाना
तब मेरी आँख में आंसू आये
देखके फिर वो वापस आये
दिल पे मेरे वो हाथ भी रखे
फिर अपना दामन फैलाये
अश्क भी पोंछे थे तब हमने
उनकी तरफ कुछ कदम बढ़ाये
ठीक तभी था बादल गरजा
मिलके भी उनसे मिल नहीं पाए
आँख खुल गयी थी अब मेरी
टूटा सपना देखा मैंने
उनको अपना देखा मैंने
उनको अपना देखा मैंने ..........
No comments:
Post a Comment