Monday 2 April 2012

आँखें भी बोलती हैं...

बेशुमार चाहत थी 
इन उदास आँखों में
जो आंसुओं से लिपटकर छलकना चाहती थीं,मगर
पलकों तक आते-आते
सूख गयीं 
मैं जानता हूँ
कि तुमने तबस्सुम से सराबोर
अपने अल्फ़ाजों को
दफ़्न कर रखा है,अपने वजूद में ही कहीं
क्या हो जाता,जो और एक पल
अपनी आँखें खुली रखते
बयां हो जाने देते अपनी आँखों से ही
मुहब्बत की वो एक अनकही दास्तां
शायद तुम आज भी इस बात से अन्जान हो
कि आँखें भी बोलती हैं...

No comments:

Post a Comment