याद है मुझे आज भी तुम्हारी वो एक शरारत
जब अचानक एक दिन
मेरे सामने तुम गिर पड़ी थी
और रोने लगी थी बच्चों की तरह
मैं दौड़कर तुम्हे सँभालने
तुम्हारे पास पहुंचा था
फिर कैसे तुमने मुझ पर
खुद के छेड़ने का आरोप लगाकर
लोगों से पिटवाया था
और बाद में मेरे कन्धों पर हाथ रखकर
बड़े प्यार से मुझसे ये भी पूछा था-
कहीं ज्यादा तो नहीं लगी.......
No comments:
Post a Comment