Thursday 5 April 2012

कोई मंजिल नहीं..

तुमको इस प्यार की कदर ही नहीं
शाम कैसी  है कुछ खबर  ही  नहीं  
फिर  से  पैमाने  इतने  टूटे  आज 
तेरे  जाने  का  कोई  डर  ही  नहीं
उनको  जिद है  कि रौशनी ला दो
और  मेरे रात की  सहर  ही  नहीं
क़त्ल   करने  मेरा, गए  वो  वहां
जिस मोहल्ले में मेरा घर ही नहीं
पूछ मत `सहर`क्या क़यामत थी
कोई  मंजिल  नहीं,डगर  ही नहीं  

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