Sunday 11 December 2011

हसरत थी

हसरत थी
कि,तुम ख़ाब के दरीचों से
कोई ख़ाब चुराकर लाते
मेरे लिए

तुम्हारी मौजूदगी का जो एहसास
मेरे दिल में है
जगा जाते मेरी आँखों में भी
हसरत थी
कि,तुम वक़्त की टहनी से
कुछ पल चुराकर लाते
सिर्फ मेरे लिए
तो कोशिश करते हम भी
तुम्हारी साँसों में समाने की
जिस तरह बस गये हो तुम
मेरी साँसों में
हसरत थी
कि तुम कभी आते
मेरी बेताब धडकनों को  सुकून का कोई  लम्हा देने
और मेरे सीने पर हाथ रखते
तो बंद कर लेता मै अपनी आँखें
फिर सो जाता तुम्हारी जुल्फों तले
हमेशा-हमेशा के लिए.......

No comments:

Post a Comment