Tuesday 20 December 2011

मगर कहीं वो नज़र न आया

उम्मीद  लेकर नज़र  उठाया
मगर कहीं वो नज़र न आया
आवाज़   देकर  उसे  बुलाया
मगर कहीं वो नज़र न आया       




वो मेरा हमदम,वो हमनशीं है
मैं  कैसे  कह  दूँ  उसे  पराया
पलक झपकते ही उठके देखा
मगर कहीं वो नज़र न आया


क्या  चाहता  है  ये  दिल  हमारा
बस  एक चाहत बस उसका साया
अगर वो मिलता तो उससे कहता
मगर  कहीं  वो  नज़र   न  आया




इसी शहर में है अब  वो  रहता
अजीब   है   दास्ताँ   खुदाया
मैं  उसको  ढूंढा गली-गली में
मगर कहीं वो नज़र न आया

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