मगर कहीं वो नज़र न आया
आवाज़ देकर उसे बुलाया
मगर कहीं वो नज़र न आया
वो मेरा हमदम,वो हमनशीं है
मैं कैसे कह दूँ उसे पराया
पलक झपकते ही उठके देखा
मगर कहीं वो नज़र न आया
क्या चाहता है ये दिल हमारा
क्या चाहता है ये दिल हमारा
बस उसकी चाहत बस उसका साया
अगर वो मिलता तो उससे कहता
मगर कहीं वो नज़र न आया
इसी शहर में है अब वो रहता
इसी शहर में है अब वो रहता
अजीब है दास्ताँ खुदाया
मैं उसको ढूंढा गली-गली में
मगर कहीं वो नज़र न आया
No comments:
Post a Comment