Tuesday, 13 December 2011

कहाँ कोई साथ है.....

फिर यहाँ  दस्तक  हुई
आहट हुईं कुछ  बात है
मगर कहाँ कोई साथ है..... 
पास जाना चाहते थे
दूरियां बढती गयी
कहने वाले कहते हैं
कितनी हसीं मुलाकात है
मगर कहाँ कोई साथ है....
ये हवा कुछ सर्द है
आवाज़ में भी दर्द है
राह चलना भी कठिन है
और  अँधेरी  रात  है
मगर कहाँ कोई साथ है....
भूल जाता हूँ जहाँ को
जब तेरी याद आती है
ऐसा लगता  है  मेरे
हाथों में तेरा हाथ है
मगर कहाँ कोई साथ है....

No comments:

Post a Comment