Monday 12 December 2011

कोई और था..........

कितना बखुब निभाया वो किरदार
रंगमंच पर
मुझे नायक बनाकर, मेरी जिंदगी के साथ
और  मै यकीं करता चला गया
उसके हर लफ्जों पर
जाने कब खो गया
और समां गया उसका सारा वजूद मुझमे
इस कदर जगा गयी वो अपना एहसास मुझमे
की मुझे और किसी का खयाल ही न रहा
जब नींद खुली तो साथ में कोई नहीं था
हजारों,लाखों के बीच  मै कुछ यूँ तनहा था
जैसे कोई नुमाईस की चीज़
मेरी आँखों में आंसू थे
और लोग तालियाँ बजा रहे थे
सुकून था मुझे फिर भी
कि वो इस अभिनय को एक जीवंत रूप दे चुके थे
फर्क सिर्फ इतना था कि...
उसका  नायक मै नहीं
कोई और था..........

No comments:

Post a Comment