बात करते हैं मुझसे हंस-हंसके
मेरे हर गम पे भी रो देते है
फिर भी कहते हैं तुमसे प्यार नहीं...
जब भी करता हूँ प्यार की बातें
देखते हैं वो अपने हाथों में
कितना बेचैन कर गया है
वो एक शख्स मुझे
सिर्फ दो चार मुलाकातों में
जब भी नज़रें मिलाते हैं हमसे
अपनी आँचल में सिमट जाते हैं
फिर भी कहते हैं तुमसे प्यार नहीं....
खुद वो ज़ख्म भी देते हैं मुझे
और खुद ही सवाल करते हैं
न चले जायें कहीं जख्म के भर जाने पर
बस इसी बात से हम डरते है
देखते हैं वो गर उदास मुझे
आके सीने से लिपट जाते हैं
फिर भी कहते हैं तुमसे प्यार नहीं....
मेरे हर गम पे भी रो देते है
फिर भी कहते हैं तुमसे प्यार नहीं...
जब भी करता हूँ प्यार की बातें
देखते हैं वो अपने हाथों में
कितना बेचैन कर गया है
वो एक शख्स मुझे
सिर्फ दो चार मुलाकातों में
जब भी नज़रें मिलाते हैं हमसे
अपनी आँचल में सिमट जाते हैं
फिर भी कहते हैं तुमसे प्यार नहीं....
खुद वो ज़ख्म भी देते हैं मुझे
और खुद ही सवाल करते हैं
न चले जायें कहीं जख्म के भर जाने पर
बस इसी बात से हम डरते है
देखते हैं वो गर उदास मुझे
आके सीने से लिपट जाते हैं
फिर भी कहते हैं तुमसे प्यार नहीं....
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