Sunday 5 May 2024

गजल

हमने जब भी,शबाब देखा है 
बाखुदा , बेनकाब देखा है 
मेरे पहलू में उसका साया था 
आज ऐसा ही ख्वाब देखा है 
खुली जुल्फें तेरी बादल की घटा लगती है 
होठ जैसे गुलाब देखा है 
सभी मदहोश थे तेरी नशीली आंखों से 
मैंने छलका शराब देखा है 
चाल दिलकश तेरी 'सहर' हंसी घुंघरू की तरह 
हर अदा लाजवाब देखा है

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