Thursday 2 May 2024

एक दुल्हन

चली जा रही थी डोली 
सिसकियां गूंज रही थी 
सर से पांव तक सजी 
सुर्ख लाल जोड़े में 
उस दुल्हन की 
जो कल तक चंचल थी 
हंसती थी 
हर छोटी-छोटी बातों पर 
अपनी सखियों के साथ 
आज उनसे 
दूर मां-बाप और भाई के 
प्यार से बिछड़ कर 
एक अनजान सी दुनिया की ओर 
गुमसुम थी 
अपने अतीत की यादों को लेकर 
एक घर को सूना करके 
दूसरे घर को आबाद करने 
चली जा रही थी डोली..... 
कौन समझता उसके दर्द को 
जो बैठी थी बिल्कुल अकेली 
अपने अरमानों का खून करके 
अपनी मर्यादा के आगे मजबूर होकर 
जिस आंगन में पलकर बड़ी हुई 
उसे छोड़कर 
मां बाप की गोद को सूना करके 
और उसे भाई को जिसने 
उसे हर पल प्यार दिया खुशियां दी  
उसे एक पल में रुला कर 
चली जा रही थी डोली.....

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