Sunday 5 May 2024

एक बूंद

एक दिन
गर्मी की तपिस में 
तुम्हारे से माथे से निकली हुई पसीने की वह एक बूंद 
किस कदर तुम्हारे जिस्म को शराबोर करती हुई 
समा गई थी 
इस बंदर जमीन में
उसी बूंद से निकला है 
यह पौधा शायद 
जो आज एक पेड़ बन चुका है
तब बहुत गमजदा था मैं 
कि तुम्हारे पलकों की 
एक छांव न पा सका 
मगर आज खुश हूं 
कि जिस पेड़ की छांव में मैं हूं 
वह तुम्हारी बूंद से है

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