Wednesday 1 May 2024

पुकारता चला गया

लबों से उसका नाम मैं पुकारता चला गया 
नजर से उसको रुह में उतरता चला गया 
गिरे भी हम उठे भी हम थे लड़खड़ाए जब कदम 
आया कोई करीब था पकड़ लिए थे हाथ हम 
अच्छा लगा था कोई मुझे मारता चला गया .......
किया फिर एक सवाल वो 
कहां थी इतने रोज तुम 
इधर दिए हैं मर के हम 
क्या जानो दिल का बोझ तुम हुआ क्या उसे जीत कर 
मैं हरता चला गया .......
गमों का दर्द था शुरू 
कमी थी कुछ नहीं मुझे 
मिलन के आस थी मिलेंगे वो कहीं मुझे 
ये सोचकर मैं जिंदगी गुजरता चला गया...

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