Thursday 9 May 2024

रंगमंच

कितना बखूबी निभाया वह
 किरदार रंगमंच पर 
मुझे नायक बनाकर 
मेरी जिंदगी के साथ 
ऐसा लगा 
जैसे सब कुछ सच हो 
और मैं यकीन करता चला गया 
उसके हर लफ्जों पर 
जाने कब खो गया मैं उसमें 
जाने कैसे समा गया उसका वजूद मुझमें 
इस कदर जगा गई 
वह अपना एहसास मुझमें 
कि मुझे और किसी का ख्याल ही नहीं रहा 
और जब आंख खुली तो कोई नहीं था 
हजारों लाखों के बीच में 
मैं बिल्कुल तन्हा था 
जैसे कोई नुमाइश की चीज 
मेरी आंखों में आंसू थे 
और लोग तालियां बजा रहे थे 
सुकून था मुझे फिर भी 
चाहे मजबूर ही सही 
वह इस अभिनय को 
एक जीवंत रूप दे चुके थे 
फर्क सिर्फ इतना था 
कि उसका नायक मैं नहीं
कोई और था

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