इसी तरह हमें अपने झूठे वादों का
कैसे दिल आओगे यकीन तुम
खुद को मेरा होने का
न जाने कितने टुकड़ों मेंबिखेर दिया है
तुमने मेरे वजूद को
अगर इन्हें समेटू भी
तो जिंदगी शायद कम पड़ जाए
ऐसा लगता है जैसे मेरी
अब ना कोई मंजिल है,ना राह है
ना रोशनी है ना कोई हमराही है
जब तुम्हारे साथ चलते रहे
लगता था जैसे सारा जहां साथ है
मगर आज मैं इस पूरी भीड़ में तन्हा हूं
घुटन है मुझे ऐसी जिंदगी से
मत बनो हमदर्द मेरा
शायद आदत पड़ गई थी मुझे इसकी
मगर अब सुकून महसूस कर रहा हूं
तुम्हारे बगैर भी
क्योंकि आज मैं तुम्हे सिर्फ याद करता हूं
तुम्हारा इंतजार नहीं....
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