मेरी सांसों में बसके,मुझे अपना बनाता
मैं जब तन्हा रहूं तो मेरी यादों में आकर
कभी मुझको हंसाता कभी मुझको रुलाता
सफर में चलते-चलते कम जब लड़खड़ाते
मुझे जब नींद आती तो आंचल में सुलाता
मेरी हर बात सुनता मेरा हर गम समझता
मेरी जब आंख भरती तो सीने से लगाता
भटक जाता कभी मैं 'सहर' जब अपने घर से
मुझे आवाज देकर वह फिर वापस बुलाता।
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