सारे एहसास
एक बदगुमां सहरा में
बहुत चाहा था मैंने तुम्हें
तुमको तुमसे चुराने की कोशिश भी की
और जब तुम्हारे पास जाकर
तुम्हारी आंखों में देखा
तो उन में खुद को ही पाया
उसे पल ऐसा लगा था
जैसे इस जहां की सारी खुशियां
मेरे दामन में सिमट आई हैं
फिर क्या हो गया तुम्हें
तुमने मेरी तरफ एक नजर
देखना भी गवारा नहीं समझा
तुम ऐसे तो ना थे
मुझे सिर्फ यही बता देते कि
तुमसे जिंदगी की उम्मीद लगाकर
मैंने कौन सा गुनाह कर दिया था
आज नहीं होता दर्द मुझे,किसी भी जख्म से
नहीं होती कोई खुशी,दुनिया की हर ख्वाहिश
पूरी होने पर भी
समझ में नहीं आता कि
किन यादों के सहारे अब रहूं मैं
कम से कम साथ देने का एक झूठा वादा ही कर देते
फिर मुझे छोड़कर चाहे कहीं भी चले जाते
मैं तुम्हारे आने के इंतजार में
पलके बछाए
हंस के पूरी जिंदगी गुजार देता...
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