Tuesday 7 May 2024

बस इतना ही कहे

जब भी डूबता हूं 
ख्यालों के एहसास में 
चाहता हूं उचक कर साहिल को छू लूं 
कोशिश भी करता हूं 
तो पांव फिसल जाते हैं 
और हम दरिया में रह जाते हैं 
हमारी सांसे ही शायद हमारा साथ न दें 
पर एक उम्मीद ने दामन जो थाम रखा है 
कोई तो आएगा मेरा भी सहारा बनकर 
और उफनते हुए इस दिल का 
किनारा बनकर 
ढूंढता हूं मैं जिसे चांद और तारे में 
सोचता काश कभी वो भी मेरे बारे में
कितनी ही ठोकरें खाई है इस जमाने में 
कसर किसी ने भी छोड़ी न आजमाने
उम्र भर जख्म मिले 
और हम तड़पते रहे 
उनकी बस एक झलक के लिए तरसते रहे 
सुकून मिल जाता मुझे गम नहीं होता कोई 
कुछ न करता तो कोई आकर बस इतना ही कहे 
आज से हम भी तेरे साथ रहे 
आज से हम भी तेरे साथ रहे

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