गुजरे हुए लम्हों की मुझे याद जब भी आई
मेरा दिल धड़क रहा था क्या बात हो रही थी
काली घटा थी छाई बरसात हो रही थी
खामोश थी जुबाँ फिर भी बात हो रही थी
कुछ इस कदर से बेखबर वह साथ थी मेरे
इसका भी था पता नहीं कि रात हो रही थी...
मेरे साथ जब भी उसकी मुलाकात हो रही थी
तब देखकर वो मंजर दुनिया क्यों जल रही थी
दुनिया यह चीज क्या है कहो छोड़ दूं उसे
क्यों छोड़ दूं उसे जो मेरे साथ रो रही थी...
नजरों से मेरे दूर वो रुखसत जब हो रही थी
अरमान मचल रहे थे मेरी सांस रो रही थी
आंखों से न जाने मेरी क्या'सहर'चल पड़ा
ऐसा लगा सावन की , बरसात हो रही थी
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