जिंदगी से हार कर
जब बंद कर ली थी
मैंने अपनी आंखें
आंख खुली तो
उसका मासूम चेहरा दिखा
फिर मुझमें
जीने की उम्मीद जगी
शायद उसने समझा
कि कोई उसके आसरे पर
जीना चाहता है
उसने एक पल में मेरा दिल तोड़ दिया और छुप गया
टूट चुका था मैं बेबस था
आती जाती सड़कों के
सन्नाटे को देखकर
खामोशी से रोता रहा
शायद मेरी बेबसी देखकर
उससे भी रहा नहीं गया
और छुपकर वह भी रोने लगा उसके अश्कों जब भीगा
तो तसल्ली हुई कि
मेरे गम को भी
कोई समझता है शायद
उसकी अश्कों से पूरी
तरह भीग गया तो
वह मेरी बेबसी देखकर मुस्कुराने लगा
तब मुझे एहसास हुआ
कि उसे पाने की चाह
मेरा पागलपन था
कहां चांद और कहां है मैं...
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