लबों से उसका नाम मैं पुकारता चला गया
नजर से उसको रुह में उतरता चला गया
गिरे भी हम उठे भी हम थे लड़खड़ाए जब कदम
आया कोई करीब था पकड़ लिए थे हाथ हम
अच्छा लगा था कोई मुझे मारता चला गया .......
किया फिर एक सवाल वो
कहां थी इतने रोज तुम
इधर दिए हैं मर के हम
क्या जानो दिल का बोझ तुम हुआ क्या उसे जीत कर
मैं हरता चला गया .......
गमों का दर्द था शुरू
कमी थी कुछ नहीं मुझे
मिलन के आस थी मिलेंगे वो कहीं मुझे
ये सोचकर मैं जिंदगी गुजरता चला गया...
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