Tuesday, 30 April 2024

गजल

मेरी आंखों में कोई अश्क अब ठहरता नहीं 
टूटा है दिल , मगर बिखरता नहीं
फैसला हो कोई तो मुझको सुना दे बेशक 
सहमा सहमा सा हूं पर डरता नहीं 
कतरा कतरा ही सही साल कई बीत गए 
भूल पाता नहीं तुझको मैं याद करता नहीं
सभी उम्मीद तुमसे जिंदगी की करते हैं 
तेरे बगैर कोई मरता नहीं 
पहले हर रोज ही 'सहर'वो मिलने आते थे 
अब इधर से कोई गुजरता नहीं

गीत

रुठी रुठी सी है मंजिले हमसे क्यों 
जिंदगी में मेरी आप आए नहीं 
हाल दिल का मेरे आप समझे नहीं 
इस नजर के इशारे को समझे नहीं 
इस कदर रूठ कर आप जाने लगे 
हम बुलाए मगर आप आए नहीं.
साथ मेरे कभी आप रहते नहीं 
प्यार की भी कोई बात,करते नहीं 
कैसे कर लूं यकीन आप मेरे हुए 
मेरे सर की कसम आप खाए नहीं 
दिल के जज्बात मुझमें ठहरते नहीं 
लड़खड़ाए कदम  गर संभलते नहीं 
कैसे मैं मान लूं कि मैं मदहोश हूं 
दिल पे बनके नशा आप छाए नहीं

चाहत

चाहता है क्यों दिल,हमसे कोई इजहार करें 
मैं उससे प्यार करूं , वह मुझसे प्यार करें 
घटाएं कहती हैं फिर, झूम-झूम कर मुझसे 
ये जरूरी तो नहीं, वह भी तुमसे प्यार करें 
आ गया दिल को समझ,प्यार कोई सौदा नहीं है 
वह करें या ना करें, हम ही उनसे प्यार करें 
मंजिले हैं जुदा फिर भी ये खयाल है दिल में 
हम उन्हें प्यार करें, प्यार करें , प्यार करें ...
कुछ भी खो जाने का, हमको ना कोई गम होगा 
कभी हम खुद की सोचें,खुद से कभी प्यार करें 
प्यासे रह जाएंगे हम उम्र-भर , खुशी के लिए
अगर यह जिद है हमें,वह भी हमसे प्यार करें 
अब तो आने लगी है मुझमें तहजीब 'सहर' 
मेरी अब चाह नहीं वह भी मुझसे प्यार करें

गजल

चांद सूरज अपने बाराती रहे 
और बहारें फुल बरसाती रहे 
हर तरफ शहनाइयां बजती रहे 
यह जमी भी झूमकर गाती रहे 
इस कदर खुशियां , हमारे साथ हो 
दुख की हर एक ही,लहर जाती रहे 
जब कभी घूंघट उठाऊं , मैं तेरा
तूं झुकाए पलकें , शरमाती रहे 
सारे बंधन तोड़ कर आ जाऊंगा 
जो तेरी मुझ तक सदा आती रहे

गजल

अपने रुख पर कोई पर्दा न करो 
मेरी चाहत को यूं रुसवा ना करो 
धनक के रंग सभी , तुझमें उतर आए हैं 
सादगी अच्छी है,तेरी कोई सजदा ना करो 
कहीं यह लोग न बदनाम, तुझे कर जाएं 
सबसे यूं खुल कर तुम , मिला ना करो 
लोग अफसाना बना देते हैं,हर बातों का 
दिल की बातें सबसे , कहा ना करो 
मेरी चाहत का भी,कुछ तो'सहर' ख्याल करो 
अजनबी जैसे मेरे साथ, तुम रहा ना करो

वो एक पल


वो एक पल 
जो एहसास दिलाता है, 
मेरे पास तुम्हारी मौजूदगी का 
वो एक पल
जो न जाने कब चुपके से 
मेरी जिंदगी का हिस्सा बन गया
वो एक पल 
जो अब शायद मेरे हर दर्द की 
दवा भी बन गया है 
वो एक पल 
जो मेरे आशियाने को रोशन करके 
इसकी फिजां में खुशबू बिखेर देता है 
वो एक पल 
जो ना जाने कितनी ही 
खुशियां दे जाता है मुझे 
वो एक पल 
जिनसे न जाने कितनी उम्मीदें जोड़ रखी है मैंने 
तुम यह सब जानकर भी 
दुनिया की भीड़ में इस कदर क्यों खो जाते हो, 
कि नहीं निकाल पाते मेरे लिए वो एक पल 
सिर्फ एक पल 
आखिर क्यों???

इंतजार

कितनी आस्था,से विश्वास से 
अपने मन के मंदिर में बिठाकर पूजता रहा, तुम्हें!
किसी देवता की तरह 
एक उम्र से महसूस कर रहा हूं  
तुम्हारी खुशबू अपनी सांसों में
मुझे कल की तरह आज भी इंतजार है
तुम्हारी एक स्नेहमयी स्पर्श की 
बिल्कुल उसी तरह 
जैसे किसी पतझड़ को 
इंतजार रहता है 
सावन के एक बूंद की...

Saturday, 27 April 2024

दिल से दूर कहीं

ले जाओ अपनी यादों को दिल से दूर कहीं 
और जीने दो चैन से मुझे भी
हर पल बेचैन होकर सोचता हूं 
सिर्फ तुम्हे!
क्यों सताते हो इस कदर मुझे 
क्यों रुलाते हो बेवजह
एक पल का सुकून मैं भी चाहता हूं 
ले जाओ अपनी यादों को दिल से दूर कहीं....
सुना था कि डर के आगे जीत है
मगर जितनी बार भी तुमने 
लोगों से डरने की बात की 
उतनी बार मैं हारता गया और
अपने अंदर बन रहे नासूर को
संजोता गया
फिर भी अगर तुम कहते हो कि 
वक्त आएगा कभी अपने मिलन का भी
तो मैं इंतजार करूंगा उस वक्त का 
अपनी आखिरी सांस तक 
लेकिन तब तक मेरी सांसे चलें
ले जाओ अपनी यादों को दिल से दूर कहीं....
नहीं निकलता अब कोई लब्ज़ मुझसे 
तेरी आवाज के बिना 
मुश्किल लगता है हर एक पल 
तुम्हारे साथ के बिना
मैं नहीं चाहता कि 
मेरी वजह से तुम बदनाम हो 
पर इसे तुम 
मेरा पागलपन समझो या दीवानगी
तुमसे मिलकर भूल जाता हूं 
के अपने बीच कोई और भी है 
और तुम ना चाहते हुए भी मेरा साथ देती हो
बहुत सितम किए हैं शायद मैंने तुम पर
जिसकी सजा खुद को दे रहा हूं 
तुम्हारे बगैर हर पल सालों की तरह गुजर रहा है 
इससे भी बड़ी कोई सजा है तो दे दो मगर
ले जाओ अपनी यादों को दिल से दूर कहीं....







एक गुड़िया

अभी चंद रोज पहले जो एक गुड़िया थी
मां-बाप और भाई सबकी लाडली
सबके पलकों पर रहा करती थी
वह गुड़िया जो सुबह से शाम 
एक कर देती थी अपने घर को 
स्वर्ग बनाने में
लेकिन आखिर कब तक 
एक दिन तो उसे जाना ही था
और वह चली गई 
मां-बाप और भाई सबको रोता हुआ छोड़कर 
वह चल गई
शायद यही तक का साथ था उसका उनसे
पर अब वह जिस घर में गई थी 
यही उसका अपना घर था 
उसके पिया का घर
जिसे संवारने के लिए 
वह अपनी हर एक सांस 
कुर्बान करने को तैयार थी
क्योंकि अब वह एक गुड़िया नहीं 
बल्कि एक आदर्श पत्नी बन चुकी थी 
जिसके अंदर कूट-कूट कर भरा हुआ था 
वह संस्कार- पति परमेश्वरम 
फिर क्यों छीन ली गई,उसके होठों से हंसी
जो गम में भी मुस्कुराना जानती थी 
क्यों तोड़ दिए गए उसके पैर, 
जिससे वह अपने बूढ़े सास ससुर की सेवा में 
चलना चाहती थी दो कदम 
क्यों काट डाले गए उसके हाथ 
जिनसे वह घर के बिखरे हुए सामानों को 
सलिके से सजा कर रखना चाहती थी
क्यों फोड़ डाली गई उसकी आंखें 
जिनसे वह अपने घर को 
स्वर्ग से भी सुंदर बनाने के 
सपना देखा करती थी
क्यों छीन ली गई उससे,उसकी आखरी सांस भी
जिसकी हर सांस में 
अपने घर की खुशियों के लिए 
दुआएं हुआ करती थी 
और कब तक?
सिर्फ चंद सिक्कों के लिए छीनी जाती रहेगी 
ऐसे ही हजारों-लाखों गुड़ियाओं की जिंदगी 
आखिर कब तक???

दास्तां

कैसे बयां करूं दास्तां 
मैं अपने दिल की
ख्वाहिश नहीं थी 
कि तुम्हारे सामने लब खोलूं...
कितनी हसरत और उम्मीद लिए 
मैं मिला था तुमसे
संभल जाता मैं खुद से ही
उस दिन भी शायद
अगर तुमने मेरी तरफ 
अपना हाथ ना बढ़ाया होता 
मैं यूं ही तुम्हारी तरफ 
खींचता नहीं चला गया होता 
अगर तुमने चाहत भरी नजरों से 
मुझे देखा ना होता 
मैं तुम्हारे जितना ही करीब गया
तुम मुझसे उतना ही दूर होने लगी
फिर भी मुझे तुमसे कोई गिला नहीं 
यही लिखा था मेरी किस्मत में शायद 
कि मैं तुम्हारे लिए दुनिया छोड़कर आया था 
और तुमने दुनिया के लिए 
मुझे ही छोड़ दिया.....

इल्जाम

दरों- दीवार पर इल्जाम,अब लगाया ना करो
मेरे सर की यूं ही, झूठी कसम खाया ना करो
तुमको दुनिया में खुदा मान कर, पूजा है तुम्हे
मेरी नजरों में ही, तुम खुद को गिराया न करो
तुम ही से रोशनी और चांदनी, मिलती है मुझे
अपनी सूरत को कभी मुझसे, छुपाया न करो 
गर शिकायत है मुझसे, तो करो शिकवे मुझे
अपना गुस्सा यूं चूड़ियों पर,जताया ना करो
कहीं पागल न कर दे, देखना 'सहर' तेरा
यूं लगातार निगाहों को, मिलाया न करो

जबसे उनसे नजर मिल गई है

यह जहां अच्छा लगने लगा है
जबसे उनसे नजरमिल गई है 
पहले नजरे चुराते थे, हमसे सभी
आस थी कोई हमसे भी,मिलता कभी
पर जहां ना सुना,ना खुदा ही सुना
उनसे मिलने पर फिर ये असर क्या हुआ
हर कोई बात करने लगा है,
जबसे उनसे नजरमिल गई है....
हम तो हर रोज उनको ही,देखा किए
जाने कैसे उन्हें अपना, दिल दे दिए
मुझको यह ना पता है,ये क्या हो गया 
अपने ही आपसे मैं जुदा हो गया 
अब तो गम के अंधेरे का ही आस था
कैसे फिर चांद ढलने लगा है 
जबसे उनसे नजरमिल गई है....


एक बार मिलो

रहना तन्हा लगे बेकार, तो एक बार मिलो
तुम्हें आ जाए मुझपे प्यार,तो एक बार मिलो
चाहता हूं बहुत सिद्दत से, मेरी जाने वफ़ा 
अगर हो तुमको ऐतबार,तो एक बार मिलो
दरमियां अपने और तुम्हारे,ये दुनिया वाले 
जब उठाने लगे दीवार, तो एक बार मिलो
गमों का दौर जब आए, तुम्हारी किस्मत  में 
शुरू हो अश्कों की बौछार,तो एक बार मिलो
जब डराने लगे यह आईना,'सहर' तुमको 
जिन होने लगे दुश्वार, तो एक बार मिलो।



कुछ बात तो थी उसमें....

कुछ बात तो थी उसमें,पर हम ना समझ पाए 
हमें प्यार भी था उससे, उससे ही न कह पाए
चुप रहना भी मुश्किल था,कुछ कहना भी मुश्किल था 
आंखों में नमी उसकी, मुझे सहना भी मुश्किल था
बस एक नजर हमने,देखी थी झलक उसकी
तन्हा ही गया आखिर,वह आया भी तन्हा था 
चाहा था उसे रोकूं ,पर रोक नहीं पाया
जिस बात का डर था मुझे,अंजाम वही आया 
जाता हूं जहां भी मैं,खलती है कमी उसकी 
दिल भरता भी है आहे,उम्मीद लिए उसकी 
आ जाए कहीं वो नजर,गुजरी है कई रातें 
राहें उसकी तकते, थक जाती है ये आंखें
आ जाता तो मैं उसका,हर गम अपना लेता 
मुझे ना हो फिर बिछड़े, सांसों में बसा लेता 
यही चाह है मैं उसको, खुदा अपना बना लेता 
हर ओर है एक सहरा, कोई फूल कहीं खिलता 
उसे अपना बना लेते, एक बार तो वो मिलता
एक बार तो वो मिलता....

Thursday, 25 April 2024

झूठा वादा

ना जाने कब खो गए
सारे एहसास 
एक बदगुमां सहरा में
बहुत चाहा था मैंने तुम्हें
तुमको तुमसे चुराने की कोशिश भी की
और जब तुम्हारे पास जाकर 
तुम्हारी आंखों में देखा 
तो उन में खुद को ही पाया 
उसे पल ऐसा लगा था
जैसे इस जहां की सारी खुशियां 
मेरे दामन में सिमट आई हैं 
फिर क्या हो गया तुम्हें 
तुमने मेरी तरफ एक नजर
देखना भी गवारा नहीं समझा
तुम ऐसे तो ना थे
मुझे सिर्फ यही बता देते कि 
तुमसे जिंदगी की उम्मीद लगाकर 
मैंने कौन सा गुनाह कर दिया था
आज नहीं होता दर्द मुझे,किसी भी जख्म से 
नहीं होती कोई खुशी,दुनिया की हर ख्वाहिश 
पूरी होने पर भी
समझ में नहीं आता कि 
किन यादों के सहारे अब रहूं मैं
कम से कम साथ देने का एक झूठा वादा ही कर देते
फिर मुझे छोड़कर चाहे कहीं भी चले जाते 
मैं तुम्हारे आने के इंतजार में 
पलके बछाए
हंस के पूरी जिंदगी गुजार देता...

Wednesday, 24 April 2024

स्पर्श

आ जाओ कभी बादल बनकर 
सावन के मौसम में 
कहीं दूर-दूर तक मेरी कल्पनाओ ने 
सोचा है,तुम्हें जिस रूप में..
अगर चाहते हो कि तुम्हें मैं भी ना देख पाऊं
तो आ जाना चुपके से किसी रोज
जब मैं गहरी नींद में रहूं 
पर इतने करीब जरूर आना कि 
मैं तुम्हारी सांसो को अपनी सांसो में
महसूस कर सकूं...
मैं बंद रखूंगा अपनी आखें
तुम्हारे आने से पहले 
तुम्हारी ख्वाहिश में....
संसार की हर वेदनाओं को 
सहने को तैयार मुझे इंतजार है 
सिर्फ तुम्हारी एक स्नेहमयी स्पर्श की...


वक्त

ये वक्त,जो बहुत ही कीमती है 
सबके लिए,खासकर तुम्हारे लिए 
जो बचाती हो,अपना हर एक पल
बड़े सलीके से...
और इधर मैं...
न जाने क्यों पागलों की तरह 
एक नाकाम सी कोशिश करता हूं 
तुम्हारे उन पलों से कुछ पल चुराने की
शायद इस चाह में,कि तुम्हारे साथ गुजारे 
कुछ पल,मुझे भी जीने के काबिल बना दे 
मगर एक अजीब सी घुटन होती है मुझे 
तुम्हारे उस एक पल के बिना
मुझे खुशी है जिस तरह से तुम 
अपना हर वक्त बचा रही हो
लेकिन मुझे नजरंदाज़ करके कहीं ऐसा ना हो 
कि तुम्हारे पास सिर्फ वक्त ही वक्त हो
और मैं दूर-दूर तक 
उनमें कहीं रहूं ही नहीं...


Tuesday, 23 April 2024

सच्ची मुहब्बत

अच्छे नहीं लगते अश्क मुझे 
आंखों को न ऐसे बहने दे 
चाहे जो भी हो दिल में तेरे
उल्फत का भरम अभी रहने दे
मैंने कभी तुमसे प्यार किया 
जिसका तुमसे इजहार किया
तुमने खुलकर कभी हां न कहा 
ना ही खुलकर इनकार कया
फिर दर्द मिला जो तुमसे मुझे 
मुझको ही अकेले सहने दे 
मुझे सिर्फ अकेले रहने दे 
उल्फत का भरम अभी रहने दे...
यू लव अपना नहीं सी होती 
एक पहल किसी से की होती 
मेरे बारे में कुछ तो कहा होता 
मेरी बात किसी से की होती
उम्मीदों के पत्ते हिल जाते 
आशाओं की कलियां खिल जाती 
यह बात उन्हीं से कह देते 
हमे राह जहां से मिल जाती 
कोई पहल कभी तो की होती 
चाहत थी कमी कोई खल न सके 
सांचे में मेरे तुम ढल ना सके 
चाहा था तू मेरे साथ रहे 
तुम साथ हमारे चल न सके
वह प्यार जिसे सब जान सके 
तुम ऐसी मोहब्बत कर ना सके 
ना जाने किससे डरते रहे 
एक सच्ची मोहब्बत कर न सके...
तुम मुझसे मोहब्बत कर न सके....


गजल 2

मैं हूं बेताब उनका हाल ए दिल सुनने के लिए
अगर सुना दे तो दिल को करार आ जाए 
मैंने तन्हाई के लम्हे गुजारे पतझड़ में 
वो जो हंस दे तो खिजां में बहार आ जाए 
प्यार दिल में ही किया पर जुबां से कुछ न कहा 
मैं समझता था शायद उनको समझ आ जाए
अपने घर का भी पता भूल गया हूं मैं अब 
वही दिखते हैं हर जगह तो हम कहां जाएं 
उनके सजदे पे जो अरमान दिल में है मेरे 
मुझे डर है कि उन्हें देख कर ना आ जाए
प्यार इस आप पर 'सहर' मैं उनसे करता रहा 
शायद उनको भी कभी मुझपे प्यार आ जाए।

गजल

मेरी जिंदगीके वीराने सफर में,
अगर साथ दोगे मेरे साथ आओ
न समझो गंवारा अगर इस सफर को
तो गम सारे अपने मुझे देकर जाओ
तुम्हें मैं भुला दूं यह मुमकिन नहीं है
तेरे बस में हो तो मुझे भूल जाओ 
यकीनन मेरे पास आ जाओगे तुम
न अब दूर रह कर मुझे तुम सताओ
पुकारेंगी तुमको सहर मेरी नजरें 
यह पलकें झुका कर मेरे पास आओ।

सहर

'सहर' जो समंदर की 
उठती और गिरती हुई लहरों की तरह
अपने पूरे वजूद में दर्द संजोए हुए हैं 
देसी केवल वही समझता है,
महसूस करता है 
वह नहीं चाहता कि 
उसके दर्द को कोई जाने
इसलिए वह खामोश है,फिर भी
उसकी आंखों में निश्च्छल प्रेम है
उसकी आत्मा स्वच्छ है
अपने अंदर का चिराग 
वह हमेशा जलाए रखता है
अपना डर हमेशा खुला रखता है 
शायद इस चाह में कि 
कोई उसकी दिल की गहराईयों में भी
झांककर देखे कि क्या चीज़ है 'सहर'

एक आरजू

एक आरजू तुम्हें देखने की 
एक ख्वाहिश तुम्हें पाने की 
एक हसरत तुम्हारे साथ 
कुछ वक्त गुजारने की 
एक लम्हे की तलाश 
तुम्हारे जुल्फों तले,तुम्हारी गोद में 
सर रख कर सोने की
न जाने क्यों रहती है,हर वक्त मुझे
चाहता हूं कि लिखो कुछ तुम्हारे बारे में
लेकिन कलम बेजान सी हो जाती है 
और मुझे शब्द नहीं मिलते
काश कभी ऐसा होता 
किसी रोज तुम चुपके से आती 
मेरे दिल के पन्ने पर
शब्द बनकर खुश्बू की तरह बिखर जाती 
और बना देती मुझे भी एक कविता...

Friday, 19 April 2024

भरोसा

कब तक दिल आओगे भरोसा 
इसी तरह हमें अपने झूठे वादों का 
कैसे दिल आओगे यकीन तुम 
खुद को मेरा होने का
न जाने कितने टुकड़ों मेंबिखेर दिया है 
तुमने मेरे वजूद को
अगर इन्हें समेटू भी 
तो जिंदगी शायद कम पड़ जाए
ऐसा लगता है जैसे मेरी 
अब ना कोई मंजिल है,ना राह है 
ना रोशनी है ना कोई हमराही है
जब तुम्हारे साथ चलते रहे
लगता था जैसे सारा जहां साथ है 
मगर आज मैं इस पूरी भीड़ में तन्हा हूं
घुटन है मुझे ऐसी जिंदगी से
मत बनो हमदर्द मेरा
शायद आदत पड़ गई थी मुझे इसकी
मगर अब सुकून महसूस कर रहा हूं
तुम्हारे बगैर भी
क्योंकि आज मैं तुम्हे सिर्फ याद करता हूं
तुम्हारा इंतजार नहीं....



कोई ख्वाबों में आता

कोई ख्वाबों में आता, कोई नींदें चुराता
मेरी सांसों में बसके,मुझे अपना बनाता
मैं जब तन्हा रहूं तो मेरी यादों में आकर 
कभी मुझको हंसाता कभी मुझको रुलाता 
सफर में चलते-चलते कम जब लड़खड़ाते 
मुझे जब नींद आती तो आंचल में सुलाता 
मेरी हर बात सुनता मेरा हर गम समझता 
मेरी जब आंख भरती तो सीने से लगाता
भटक जाता कभी मैं 'सहर' जब अपने घर से
मुझे आवाज देकर वह फिर वापस बुलाता।

बेखबर लम्हा..

वो लम्हा कितना बेखबर होगा 
मेरे कंधों पर तेरा सर होगा 
कितनी खुशियां हमें दे जाएगा वो पल सोचो
चांद पर अपना एक घर होगा 
मेरे काधों पर तेरा सर होगा...
बहुत जलेंगे हमें देखकर दुनिया वाले 
जाने किस-किस पर क्या असर होगा 
मेरे काधों पर तेरा सर होगा...
मुझे क्यों लगता है कि तू ही सब कुछ मेरा
तुझसे कोई भी ना बेहतर होगा
मेरे काधों पर तेरा सर होगा...
मेरे हाथों में 'सहर' हाथ तेरा जब होगा
कितना दिलकश वो फिर सफर होगा 
मेरे काधों पर तेरा सर होगा...

कोई और बहाना कर देते

करना ही जो था इनकार हमें 
कोई और बहाना कर देते 
तेरी राह से खुद हम हट जाते
एक बार इशारा कर देते....
समझा जो मेरे जज्बातों को 
जज्बात से खेला क्यों मेरे 
मन ही मन तुझको पूजा था
ईमान से खेला क्यों मेरे
मैं भूल नहीं सकता वह दिन
एक सदमा दिया था तूने मुझे
आंखों को मेरे तुम पढ़ ना सके
जब सोचा था कुछ कह दूं तुझको
मेरी बातों को तुम समझ सको 
एक तोहफा जो मैं दे दूं तुझको 
उम्मीद ना थी फिर जिसकी मुझे
तूने वो किया ऐसे क्यों किया
मुझे फिर भी तुमसे गिला नहीं 
तूने जो किया अच्छा ही किया 
लहजे ने किया तेरे ऐसा असर
मुझे होने लगी खुद से नफ़रत 
ये चोट मुझे किस जगह लगी 
कहीं और निशाना कर देते 
तेरी राह से खुद हम हट जाते
एक बार इशारा कर देते....
इस बात की हमको थी ना खबर 
कोई और था तेरे साथ अगर 
क्या खोता तेरा,क्या जाता तेरा 
यह बात भी  हमसे कह देते
दुख होता नहीं मुझको फिर हम 
कहीं और किनारा कर लेते 
तेरी राह से खुद हम हट जाते
एक बार इशारा कर देते....
मुझे ऐसी मिली थी रुसवाई 
क्यों भाने लगी अब तन्हाई 
महसूस नहीं होती मुझको 
वो बात जो मुझमें थी पहले 
अब भूल गया हूं मैं सब कुछ 
भूलती ही नहीं तेरी बातें 
अब चाह नहीं कोई साथ रहे 
अब चाह नहीं कोई पास रहे 
अब चाहत है बस इतनी सी 
मैं तन्हा रहूं बस तन्हा रहूं 
जैसा तूने चाहा वैसा कहा 
एक बार जरा सोच होते 
इनकार के और भी रास्ते थे 
कोई और बहाना कर देते 
तेरी राह से खुद हम हट जाते 
एक बार इशारा कर देते....




तेरे बिन

जो भी है दिल में मेरे तुमसे अब कहूं कैसे 
तुम्ही  बता दो कि अब तेरे बिन रहूं कैसे 
हर कोई उंगलियां उठाता है,
आजकल हर कोई सताता है
कभी साए से चौंक जाता हूं
और कभी आईना डराता है 
जाने क्या हो गया है दिल को मेरे
जाने कैसा ख्यालआता है 
चैन मेरा चुराता है बेशक
और नींदें उड़ा ले जाता है 
रातें जगती हैं मेरी,सुबह जगा देता है
मेरे घर से ही मुझे दूर भगा देता है
है कितने जख्म मेरे दिल में,मैं कहूं कैसे 
तुम ही बता दो कि अब तेरे बिन रहूं कैसे...
सोचता हूं जो यह तो रूह कांप जाती है 
हादसा यह ना हो तुमसे मुझे बिछड़ना पड़े
हर एक पल तुम्हारी याद में फिर मरना पड़े 
दिल की बस एक ही हसरत भरी सदा है यही
तेरे मिलने से जिंदगी ठहर सी जाएगी 
तेरे बिछड़ने से शायद ये रह ना पाएगी 
मेरी सांसों में तू बसी है जिंदगी बनकर
तेरी जुदाई की एक बात भी सहूं कैसे 
तुम ही बता दो कि अब तेरे बिन रहूं कैसे...


मैं तन्हा ही जी लूंगा...

मत दे कोई तवज्जो ना बात करें मुझे 
आदत है तन्हा जीने की,मैं तन्हा ही जी लूंगा
मैं तन्हा ही जी लूंगा....
सुनी हो चाहे महफिल या खाली हो पमाना
 जब प्यास सताएगी मैं अश्कों को पी लूंगा
मैं तन्हा ही जी लूंगा....
तुम कत्ल मेरा कर दो,फिर भी मेरे कातिल का
कोई नाम जो पूछेगा मैं लव को भी सी लूंगा
मैं तन्हा ही जी लूंगा....
उलझन है तुम्हें मुझसे, तो छोड़ कर चली जा
ऐ रूह मेरी तेरा, अब नाम नही लूंगा।
मैं तन्हा ही जी लूंगा....

Saturday, 13 April 2024

मेरे हमसफर

रूठना ना कभी ऐ मेरे हमसफर,
जान दे देंगे हम चाहते हो अगर।
गम तुम्हारे सभी मुझको दे दे खुदा,
सारी खुशियां मेरी तुझको दे उम्रभर।
दर्द होता है जब तो हंसी आती है,
सब तुम्हारी दुवाओं का है ये असर।
मेरी मंजिल मिलेगी मुझे कब तलक,
ये बता दो कि कब खत्म होगा सफर।
अपनी आंखों में आंसू न लाना कभी, 
डूब जाएंगे हम रो दिए तुम अगर।

चाह थी मेरी...

चाह थी मेरी दौड़ कर उनका पकड़ लूं दामन,
लाख किया कोशिश लेकन मैं चल नहीं पाया
कहते थे वह आज नहीं कल मिलेंगे तुमसे,
सदियां बीत गई लेकिन वह कल नहीं आया
लाख किया कोशिश .......
दुनिया वाले साथ है मेरे लेकिन फिर भी
तन्हाई का खौफ ज़हन से टल नही पाया
लाख किया कोशिश.......
बहुत संभाल मैंने अपने अश्कों को फिर भी 
भीग गए बिन बारश के बादल नही आया
लाख किया कोशिश ........
उसके लिए तो मैंने खुद को बदल भी डाला
लेकिन मेरे सांचे में वह ढल नही पाया
लाख किया कोशिश ......

वो कातिल नज़र...

मेरे दिल  पर क्या कर गई है असर ,
वो कातिल निगाहें वो कातिल नज़र
दबी चाहतों को छुपाना भी मुश्किल और 
इस दिल का आलम बताना भी मुश्किल
बहुत चाहता हूं कि कह दूं मगर 
वो कातिल निगाहें वो कातिल नज़र....
तेरे दर से रुख अपना मोडू तो कैसे 
तेरा हाथ आखिर मैं छोड़ू तो कैसे
नहीं मंजिलें हैं नया है सफर
वो कातिल निगाहें वो कातिल नज़र...
मुझे जख्म देकर सताने लगे हो 
सुकूं चैन भी लेकर जाने लगे हो
सहर ये तेरी कैसी है रहगुजर 
वो कातिल निगाहें वो कातिल नज़र....