मैं अपने दिल की
ख्वाहिश नहीं थी
कि तुम्हारे सामने लब खोलूं...
कितनी हसरत और उम्मीद लिए
मैं मिला था तुमसे
संभल जाता मैं खुद से ही
उस दिन भी शायद
अगर तुमने मेरी तरफ
अपना हाथ ना बढ़ाया होता
मैं यूं ही तुम्हारी तरफ
खींचता नहीं चला गया होता
अगर तुमने चाहत भरी नजरों से
मुझे देखा ना होता
मैं तुम्हारे जितना ही करीब गया
तुम मुझसे उतना ही दूर होने लगी
फिर भी मुझे तुमसे कोई गिला नहीं
यही लिखा था मेरी किस्मत में शायद
कि मैं तुम्हारे लिए दुनिया छोड़कर आया था
और तुमने दुनिया के लिए
मुझे ही छोड़ दिया.....
No comments:
Post a Comment