Saturday 27 April 2024

एक गुड़िया

अभी चंद रोज पहले जो एक गुड़िया थी
मां-बाप और भाई सबकी लाडली
सबके पलकों पर रहा करती थी
वह गुड़िया जो सुबह से शाम 
एक कर देती थी अपने घर को 
स्वर्ग बनाने में
लेकिन आखिर कब तक 
एक दिन तो उसे जाना ही था
और वह चली गई 
मां-बाप और भाई सबको रोता हुआ छोड़कर 
वह चल गई
शायद यही तक का साथ था उसका उनसे
पर अब वह जिस घर में गई थी 
यही उसका अपना घर था 
उसके पिया का घर
जिसे संवारने के लिए 
वह अपनी हर एक सांस 
कुर्बान करने को तैयार थी
क्योंकि अब वह एक गुड़िया नहीं 
बल्कि एक आदर्श पत्नी बन चुकी थी 
जिसके अंदर कूट-कूट कर भरा हुआ था 
वह संस्कार- पति परमेश्वरम 
फिर क्यों छीन ली गई,उसके होठों से हंसी
जो गम में भी मुस्कुराना जानती थी 
क्यों तोड़ दिए गए उसके पैर, 
जिससे वह अपने बूढ़े सास ससुर की सेवा में 
चलना चाहती थी दो कदम 
क्यों काट डाले गए उसके हाथ 
जिनसे वह घर के बिखरे हुए सामानों को 
सलिके से सजा कर रखना चाहती थी
क्यों फोड़ डाली गई उसकी आंखें 
जिनसे वह अपने घर को 
स्वर्ग से भी सुंदर बनाने के 
सपना देखा करती थी
क्यों छीन ली गई उससे,उसकी आखरी सांस भी
जिसकी हर सांस में 
अपने घर की खुशियों के लिए 
दुआएं हुआ करती थी 
और कब तक?
सिर्फ चंद सिक्कों के लिए छीनी जाती रहेगी 
ऐसे ही हजारों-लाखों गुड़ियाओं की जिंदगी 
आखिर कब तक???

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